Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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देवमहमूरिविरइओ कहारयणकोसो।।
प्रथमाणु
बते यज्ञदेवकथानकम् ३४ ।
क्सेिसगु
बाहिगारो
तिनो भवोयही तेण दिन्नमुदयं समग्गकुगईण । पत्तं चिय धम्मफलं वहविणिवित्ती कया जेण
॥ ७॥ केवलमिह पडिवने कसायओ चयइ पंच अइयारे । बंध वह छविछेयं अइभारं भोजविच्छेयं
॥ ८ ॥ बंधो निगडाईहिं वहो य लगुडाइणा छवी अंग । कमाइ तस्स छेदो अइभारो गुरुभरारोवो भोजाणं वोच्छेओ भत्ताईणं तु दाणपडिसेहो । गो-मणुयाइम्मि कया एते दूसंति वहबिरई
॥ १० ॥ नणु पाणाइवाओ चिय पडिवनवएण पचक्खाओ, न बंधाइणो, ता कहं तकरणे दोसो ? विरईए अखंडत्तणओ ति । सच्चं । पाणाइबायपच्चक्खाणे ते वि पच्चक्खाय व दट्ठव्वा, तेब्भावे तेसि पि भावाओ न य बंधाइकरणे चि वयभंगो किंतु अइयारो चेव । कहं ? जओ दुविहं वयं-अंतरवित्तीए धज्झवित्तीए य । तत्थ मारेमि ति वियप्पभावेण जया कोवाइभावेण परस्स मच्चुमगणितो बंधाईसु पयट्टइ न य जीवधातो होह तया दयाविवञ्जियत्तणेण वयनिरवेक्खयाए अंतरवित्तीए बयभंगो, जीववहाभावाओ य बज्झवित्तीए बयपालणं । एवं च देसस्स भंगातो देसस्स य पालणातो अइयारसदो पयट्टा । एवं सेसवएसु वि अइयार-भंगभावणा अवगंतवा । कयं पसंगेण ।। छ ।।
बंधे मिहिरो वरुणो वहम्मि लीलावई छविच्छेए । अइमारे दिढतो मह धरो भुजबुच्छेए जन्नदेवेण भणियं-भयवं ! के पुण एते वहविरइअइयारकारिणो ? । सरिणा भणिय-निसामेहि । वंसविसए कुडिनाभिहाणगामे मिहिरो नाम सावगो जीववहनिवित्तिं घेतूण गुरुपुरतो, गिहकजाई काययकम्मयर१ "याईसि क° प्रती ॥ २ 'तडावे' प्राणातिपातभावे 'तेषामपि बन्धादीनामपि भावात् ॥ २ 'वचाधा प्रती ॥
॥२४३॥
अतिचारभनयोः स्वरूपम्
बन्धातिचारे मिहिरकथा ॥२४३॥
SARKAAWARAXAXARA
वावारणेण चिंतेइ । अन्नया तेण एगो कम्मयरो अच्चंतमालस्साभिभूओ असचो सढो अविणीओ निदालुओ य निरूवितो य रयणीए गेहरक्खणनिमित्तं । सो य खणमेकं जग्गिऊण निस्संचारासु जायासु रच्छासु इओ तओ पलोइऊण पसुत्तो । जाए मज्झरते 'अविजमाणपाहरियं' ति लक्खिऊण भवियब्बयानिओगेण पविट्ठा चोरा । पाडियं खतं । कम्मवसेण पडिबुद्धो मिहिरो 'किमेसो सिसिरमारुयफरिसो ? ति जाव सणियसणियं पलोयह भवणभित्तीओ ताव पेच्छह भित्तिच्छिई निहुयपयचारं चोरनियरं च मंदिरैलूडणपयर्से ति । तओ मरणभयविहुरो मिहिरो भवणोवरि आरुहिऊण हलबोलं काउमारद्धो । पलाणा तकरा, मिलिओ लोगो, तह वि न विरमइ निद्दा पाहरियस्स । लोगेण भणियं-को एस निब्भरं सुयइ । मिहिरेण जंपियं-कम्मयरो पाहरिओ ति । 'धनो सि तुम जस्सेरिसो जामरक्खगो' ति हसिओ य लोगेण । कुविएण य बद्धो सो मिहिरेण मोरबंधेणं । बयणुग्गीरियरुहिरो य थेवेण अमतो मोक्खं पाविओ कह वि लोगेण । एस बंधविसए अइयारो । बंधे ति गयं १ ॥ छ । वहे य
कुणालाविसए संवरगामे वरुणो नाम बंभणो दिवायरसाहुसमीवे पडिबुद्धो, पवजं पडिवजंतो कोवणो' ति पडिसिद्धो समाणो पंचाणुवइयं सावयधम्म परिपालितो चिट्ठए । सो य एगया पियरको निमंतितो धाइलवणिएण । जाए य भोयणसमए अन्नेहिं बंभणेहिं समं गओ भोयणत्थं तग्गिहे, आसीणो समुचियट्ठाणे । 'विधम्मो' त्ति न दिति से
१ "यापुर' प्रती ॥ २ "माणं पा प्रती ॥३मन्दिरलष्टनप्रवृत्तम् ॥ ४ हलबोलो प्रती । कोलाहल मिव्यर्थः ॥ ५ "क्खो पा प्रती ॥ ६ समणो प्रतौ ।। ७ पितृकार्य ॥
वधाविचारे वरुणकथा

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