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पूजापाठ
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देव-शास्त्र-गुरु- पूजा युगल किशोर जैन 'गुगल' विरचित
# स्थापना
केवल रवि किरणोसे जिसका सम्पूर्ण प्रकाशित है अन्तर । उस श्री जिनवाणी में होता. तत्वों का सुन्दरतम दर्शन ॥ सदर्शन-बोध-चरण-पथ पर, अविरल जो बढ़ते हैं मुनिगण । उनदेव. परम आगमगुरुको शत-शतवन्दन शत-शतवंदन ॥
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याप
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इन्द्रिय के भोग मधुर विप सम. लावण्यमयी कञ्चन काया । यह सब कुछ जड़की कोड़ा है, में अब तक जान नहीं पाया ॥ मैं भूल स्वयं के वैभव को, पर ममता में अटकाया हूं । अब निर्मल सम्यक-नीर लिये, मिध्या मल धोने आया हूं ॥
ग्रामीमा निलामीति नाटा ॥ १ ॥
जड़ चेननकी सब परिणति प्रभु । अपने अपनेमें होती है। अनुकूल कहें प्रतिकूल कह. यह झूठी मन को वृत्ति है !! प्रतिकूल संयोगों में क्रोधित होकर संसार बढ़ाया है । सन्तप्त हृदय प्रभु ! चंदन सम, शीतलता पाने आया है ।
ॐ हो रयोजनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥
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