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जैन पूजा पाठ सण्ड
शुकल षाढ़ सप्तमि दिवस शेष कर्म हनि मोक्ष । शिव कल्याण सुरपति कियो जजू चरण गुण धोन्त ।। नेमनाथ जिन सिद्ध भये सिद्ध क्षेत्र गिरनार ।
मन वच तन कर पूज हूँ भवदधि पार उतार ॥ ॐ हो भी गिरनार सिद्धक्षेत्र परक्त सेतो अषाढ़ सुदी सातें को श्री नेमिनाय तीर्घरादि बहत्तर कोड़ सात से मुनि मुक्ति पधारे, पर्य० ।। दोहा-कार्तिक वदि मावस गये शेष कर्म हनि मोक्ष ।
पावापुरते वीर जिन जजू चरण गुण धोक ॥ महावीर जिन सिद्ध भये पावापुर से जोय । मन वच तन कर पूजहूं शिखर नमूं पद दोय ॥'
हो श्री पावापुर सिद्धक्षेत्र परवत सेतो कार्तिक ब्दो मावत को श्री वर्द्धमान तीर्थरादि जसंख्य मुनि मुक्ति पधारे, अर्घ० । दोहा-सुधर्मादि गणेश गुरु अन्तिम गौतम नाम ।
तिन सबकू लै अर्घ तै पूजूं सब गुण धाम ॥ . • हो श्री सुधर्मादि गौतम गराधर देव गुरावा ग्राम के उद्यान आदि भित्र-भिन्न स्थानो से निरवास पधारे, अर्घ०। दोहा—या विधि तीर्थ जिनेश के बन्दू शिखर महान ।
और असंख्य मुनीश जे पहुंचे शिवपद थान ॥ सिद्ध क्षेत्र जे और हैं भरत क्षेत्र के मांहि । और जे अतिशय क्षेत्र हैं कहे जिनागम मांहि ॥