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जैन पूजा पाठ सग्रह
पं० भूधरकृत दूसरी स्तुति अहो! जगतगुरु देव, सुनियो अरज हमारी। तुम हो दीनदयाल, मै दुःखिया संसारी॥ इस भव वन में वादि, काल अनादि गमायो। भ्रमत चहूँगति माहि, सुख नहि दुःख बहु पायो । कर्म महारिपु जोर, एक न कान करै जी। मन मान्या दुःख देहि, काहू सो नाहि डरै जी ।। कबहूँ इतर निगोद, कबहूँ नर्क दिखावें। सुरनर-पशुगति माहि, बहुविधि नाच नचावें । प्रभु इनके परसग, भव भव माहि बुरे जी। जे दुःख देखे देव । तुमसो नाहिं दुरे जी । एक जनम की बात, कहि न सको सुनि स्वामी। तुम अनन्त परजाय, जानत अन्तरयामी ।। मैं तो एक अनाथ, ये मिलि दुष्ट घनेरे। कियो बहुत बेहाल, सुनियो साहिब मेरे ।। ज्ञान महानिधि लूटि, रङ्क निबल करि डारयो। इन ही तुम मुझ माहि, हे जिन ! अन्तर पार्यो । पाप पुण्य मिलि दोइ, पायनि बेडी डारी। तन कारागृह माहि, मोहि दिये दुःख भारी ॥