Book Title: Jain Pooja Path Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 473
________________ जैन पूजा पाठ सप्रह ४५७ - सेवक मरज कर सुनो, हो करुणानिधि देव । दुखमय भवदधि तें मुझे, तारि करू तुम सेव । शांति० २६॥ घत्ता छन्द इति जिन गुणमाला ममल रसाला जो मविजन कठे धरई। हुय दिवि अमरेस्वर, पहामि नरेस्वर, शिवसुन्दरि ततछिन वरई ।। ॐ ही श्री शातिनाथ जिनेन्द्राय पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा । षोडशकारण व्रत जाप समुच्चय -ॐ ही श्री दर्शनविशुद्धयादि षोडशकारण भावनाभ्यो नम । (३) ॐ हो भी दर्शन विशुद्धये नम (२) ॐ ही श्री विनय सम्पन्नताथै नम (३) ॐ ही श्री शोलव्रतेष्वनतिचाराय नम (४) ॐ ही श्री भाभीक्ष्णज्ञानो पयोगाथ नम (५) ॐ ही श्री सवैगाय नम (६) ॐ ही श्री शक्तितस्त्यागाय नम (७) ॐ ही प्री शक्तितस्नपसे नम (८) ॐ ह्री श्री साधुसमाधये नम (६) ॐ ह्री श्री वैयाव्रत्य करणाय नम (१०) ॐ ही श्री अहंभक्त्यै नम (११) ॐ ह्री श्री भाचार्य मक्त्य नम (२२) ॐ ह्री श्री बहुश्रुतमक्त्यै नम (१३) ॐ ह्री श्री प्रवचनभक्त्य नम (२४) ॐ ही श्री मावश्यकापरिहाणये नम (१५) ॐ ह्री श्री मार्गप्रभावनाय नम - (३) ॐ ह्री श्री प्रवचन-वत्सलत्वाय नम । * मजन * सांवलिया पारसनाथ शिखर पर भले विराजे जी। भले विराजे, भले विराजे, भले विराजे जी ॥ साव० ॥१॥ टोंक टॉक पर ध्वजा विराजे झालर घंटा वाजे जी। झालर की झंकार सुनो जव अनदह बाजे बाजे जी ॥ साव० ॥२॥ दूर दूर से यात्री आवे मन में लेकर चाव । अष्ट द्रव्य से पूजा कोनी, पुष्प दिये चढाय ॥ सांप० ॥३॥ पैंड पैंड पर सिंह दहाडे जहाँ भीलों का वासा। जहां प्रभु तुम मोक्ष गये थे वहाँ लियो निरवासा ॥ साव० ॥४॥ दूर दूर से भील भी आये जिनकी मोटी चोटी। जिन के दया धर्म नहीं मन में उनकी किस्मत खोटी सांव०॥५॥

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