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जैन पूजा पाठ संग्रह
ईर्षादिकतै भये निंदिये जे भयभीता ॥१०॥
तृतीय सामायिक भाव-कर्म । सब जीवन में मेरे समता भाव जग्यो है। सब जिय मो सम समता राखो भाव लग्यो है ।। आर्त रौद्र द्वय ध्यान छांडि करिहूं सामायिक । संजम मो कब शुद्ध होय यह भाव बधायिक ॥११॥ पृथिवी जल अरु अनि वायु चउकाय वनस्पति । पंचहि थावर माहि तथा त्रस जीव बर्से जिति ॥ वे इन्द्रिय लिय चउ पंचेन्द्रिय माहि जीव सब । तिनत क्षमा कराऊँ मुझ पर क्षमा करौ अब ॥१२॥ इस अवसर में मेरे सब सम कञ्चन अरु तृण । महल मलान समान शत्रु अरु भित्रहिं समगण | जामन भरण समान जानि हम समता कीनी। सामायिक का काल जिते यह भाव नवीनी ॥१३॥ मेरो है इक आतम तामैं ममत जु कीनो।
और सबै मम भिन्न जानि समता रस भीनो॥ भात पिता सुत बन्धु मित्र तिय आदि सबै यह । मोते न्यारे जानि जथारथ रूप कयो गह ॥१४॥ मैं अनादि जगजाल मांहि फँसि रूप न जाण्यो। एकेन्द्रिय दे आदि जन्तु को प्राण हराण्यो। ते सब जीव समूह सुनो मेरी यह अरजी। भव-भव को अपराध छिमा कीज्यो कर मरजी ॥१५॥