Book Title: Jain Pooja Path Sangraha
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
श्री वासुपूज्य जिन-पूजा
(वृन्दावन कृत)
छन्द रूप कवित्त श्रीमत वासुपूज्य जिनवर -पद, पूजन हेतु हिये उमगाय । धारो मन-वच-तन सुचि करिके, जिनकी पाटल-देव्यामाय ।। महिप-चिह्न पढ़ से मनोहर, लाल-वरन-तन समता-दाय । सो करुना-निधि-कृपा-दृष्टि, करितिष्ठहु सुपरितिष्ठ यहँाय
ॐ ही थी वासुपूज्यजिनेन्द्र । अत्र अवतर अवतर सवौपट् । ॐ ही श्री वासुपूज्यजिनेन्द्र । अब तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । *ही श्री वासुपूज्यजिनेन्द्र ! अब मम सग्निहितो भव भव वपट् सन्निधीकरण ।
अण्टक
छन्द जोगीराला गगा-जल भरि कनक-कुभ मे, प्रासुक गन्ध मिलाई , करम-कलक विनाशन कारन, धार देत हरपाई। वासुपूज्य वसु-पूज-तनुज-पद, वासव संपत आई ,
वाल ब्रह्मचारी लखि जिनको, शिव-तिय सनमुख धाई। * हों श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निवंपामोति स्वाहा । कृष्णागरु मलयागिरि चदन, केशरसग घसाई,
भव आताप विनाशन कारन, पूजो पद चितलाई ॥ वासु० ॥ ॐ हीं श्री वासुपूज्यजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ।

Page Navigation
1 ... 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481