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'जैसे सूरज की किरणो से अंधियारा नजर नही जाता, भीषण से भीषण अन्धकार का कोई पता नही पाता, बस उसी तरह से है जिनवर जो गाता तेरी गुण गाथा, उसको सशक्त हय गज वाले राजा टेका करते माथा ।। ४२ ॥
रण मे माले से जरियो का जब रुधिर वैग से बहता है, वह रुधिर धार कर पार वेग से हर योद्धा तत्पर रहता है, ऐसे दुर्जय शत्रु पर भी वह विजय पताका फहराते,
है प्रम माप के चरण कमल जिनके द्वारा पूजे जाते ॥४३॥ सागर की भीषण लहरो से जब नया डगमग करती है, या फिर प्रलयकारी स्वरूप अग्नि जब अपना धरती है, उस वक्त जापका ध्यान मात्र जो भक्त हृदय से करते हैं, इन आकस्मिक विपदामो में हर समय देव गण रहते हैं ।। ४४ ॥
हे प्रमो जलोदर से जिनको काया निर्बल हो जाती है, जीने को आशा छोड़ दशा जब शोचनीय हो जाती है, उस समय जापके चरणों की रज जो बीमार लगाते हैं,
वह फिर से कामदेव जैसा सुन्दर स्वरूप पा जाते हैं ॥ ४५ ॥ जो लौह श्रृङ्खलामो द्वारा पग से गर्दन तक जकड़ा हो, जकड़न से जवानों पर का चमड़ा भी कुछ-कुछ उखड़ा हो, ऐसा मानव भी बन्धन से पल मैं मुक्ति पा जाता है, 'जो तेरे नाम मन्त्र को प्रभु अपने अन्तर मै ध्याता है।॥ ४६॥
है प्रभु जाप को यह विनती जो भक्ति भाव से गाते हैं, दावानल सिंह सर्प हाथी हर विघ्न दूर हो जाते हैं, तिर जाते गहरे सागर से तन के बन्धन कट जाते हैं,
हर रोग दूर हो जाते जो भक्तामर पाठ रचाते हैं॥४७॥ यह शब्द सुमन से गथी है श्री जिनवर के गुण की माला, वह मोक्ष लक्ष्मी पाता है जिसने भी इसे गले डाला, श्री मानतुङ्ग मुनिवर ने यै स्तोत्र रचा सुखदाई है, कवि 'काका' ने माषा द्वारा हर कण्ठो तक पहुंचाई है ।। ४६॥
दोहाभक्तामर स्तोत्र का करे मव्य जो जाप,मनोकामना पूर्ण हो मिटे सभी सताप। विघ्न हरन मगल करन सभी सिद्धि दातार,'काका' मक्तामर नमो भव दधि तारनहार ।