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जैन पूजा पाठ सह
यो समाधि उरमाही तावा, अपनो हित जो चाहो , तज ममता अरु जाठी मदको, जोतिस्वरूपी ध्यावो । जो कोई नित करत पयानो, ग्रामान्तर के काजै. सो भी शकुन विचारै नीके, शुभ के कारण साजे । ५०॥ मातादिक जरु सर्व कुटुम्ब सौ, नीको शकुन वनावे , हतदी धनिया पुनो जात, व दही फल लावै । एक ग्राम के कारण एते. कर शुभाशुभ सारे, जब परगति को करत पयानो, तउ नहि सोचे प्यारे । ५११ सर्व कुटुम्ब जब रोवन लाग, तोहि रुलावे सारे , ये अपशकुन करें सुन तोको, तू यो क्यो न विचारे । जव परगति को चालत दिरिया, धर्मध्यान उर जाना , चारो माराधन माराधा, माहतनो दुस हानो । ५२ हे नि शल्य तजो सब दुविधा मातमराम सध्यावो , जब परगति को करहु पयानो, परम तत्व उर तावो । मोह जालको काट पियारे, अपनो रूप विचारो , मृत्यु मित्र उपकारी तरी, यो उर निश्चय धारो । ५३६ दोहा -मृत्युमहोत्सव पाठको पढौ सुनो बुधिवान ।
सरधा धर नित सुस लहो, सूरचन्द्र शिवथान । पञ्च उभव नव एक नम, सवत सो सुखदाय । माश्विन श्यामा सप्तमी, कह्यो पाठ मनलाय ।