Book Title: Jain Pooja Path Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 467
________________ - 10une ४५ पुत्र चिलाती नामा मुनि को, बैरी ने तन घातो, मोटे-मोटे कोट पडे तन, तापर निज गुण रातो । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, अाराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्युमहोत्सव बारी ॥४३॥ दण्डकनामा मुनि की देही, बाणन कर अति भेदी, तापर नैक डिगे नहि वै मुनि, कर्म महारिपु छेदी । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, अाराधन चितधारी, तो तुपरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ।।४४।। अभिनन्दन मुनि जादि पांच सौ, घानि पेलि जु मारे, तो भी श्रीमुनि समता धारो, पूरब कर्म विचारे । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, अाराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव वारी ॥४५॥ चाणक मुनि गौधर के माही, मन्द जननि पर जाल्यो, श्रीगुरु उर समभाव धारके, अपनो रूप सम्हाल्यो । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, माराधन चितधारी, तौ तुपरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी । ४६० सात शतक मुनिवर ने पायो, हस्तनापुर मे जानो, बलिब्राह्मण कृत घोर उपद्रव, सो मुनिवर नहि मानो। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, माराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥४७॥ लोहमयी जाभूषण गढके, ताते कर पहराये , पांची पाण्डव मुनि के तन में, तो मो नाहि चिगाये । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, अाराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥४८॥ और अनेक मये इस जग मै, समता रस के स्वादी, वे ही हमको हो सुखदाता, हर हैं टेव प्रमादी। सम्यक्-दर्शन ज्ञान चरन तप, ये आराधन चारो, ये ही मोक सुख के दाता, इन्हे सदा उर धारो ॥ ४ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481