Book Title: Jain Pooja Path Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 465
________________ मैन पूजा पाठ सप्रह ४४९ मन थिरता करके तुम चिन्तो, चौ माराधन भाई, वे ही ताको सुख की दाता. और हितू कोउ नाही। मागे बहु मुनिराज भये है. तिन गर्हि थिरता भारी, बहु उपसर्ग सहै शुम भावन, माराधन उर धारी ॥२६॥ तिनमे कछुइफ नाम कहूँ मै, सनो जिया चित लाके , भावसहित अनुमोदै तासे, दुर्गति होय न जाके । अरु समता निज उर में मावै, भाव अधीरज जावे , यो निशदिन जो उन मुनिवर को, ध्यान हिये बिच लावें ॥३०॥ धन्य-धन्य सुकुमाल महामुनि, कैसे धीरज धारी, एक श्यालनी युगबच्चायुत, पाय मख्यो दुखकारी। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, जाराधन चित धारी. तो तुमरे जिय कौन दुख है. मृत्यु महोत्सव बारी ।।३।। धन्य-धन्य जु सकौशल स्वामी, व्याघ्री ने तन खायो, तो भी प्रीमुनि नेक डिगो नहि, मातमसो हित लायो। यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, अाराधन चित धारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है। मृत्यु महोत्सव बारी ॥३२॥ देखो गजमुनि के सिर ऊपर, विप्र अगिनि बहू बारी, शीश जले जिमि लकडी तनको, तो भी नाहि चिगारी। यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, अाराधन चित धारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है, मृत्यु महोत्सव बारी ॥३३॥ सनत्कुमार मुनि के तन मै, कुष्ठ वेदना व्यापी, छिन्नभित्र तन तासो हूवो, तब चित्यो गुण मापी । यह उपसर्ग सह्यो धर थिरता, आराधन चितधारी, तो तुमरे जिय कौन दुख है, मृत्यु महोत्सव बारी ॥३४।। श्रेणिकसुत गगा में डुब्यो, तब जिन नाम चितारयो, धर सलेखना परिग्रह छोड्यो, शुद्ध भाव उर धारयो । यह उपसर्ग सह्यो घर थिरता, माराधन चितधारी, तो तुमरे जिये कौन दुख है ? मृत्यु महोत्सव बारी ॥३॥ २९

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