Book Title: Jain Pooja Path Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 456
________________ ४४. जेन पूजा पाट माह है त्रिभुवनपति तुम में सब ही उत्तम गुरस दिये दिखाई हैं, हैं पूर्ण चन्द्र से कनावान जो त्रिभुवन को सुखदाई हैं, इसलिये उन्हे इच्छानुसार विचररा से कौन रोक सकता, जो त्रिभुवनपति के जाप्रय हैं उनको फिर कौन टोक सकता। १४ । जो प्रलयकाल को तेज वायु पर्वत करती कम्पायमान, वह पर्वतपति समेर राज कर सकती नही चलायमान, दस उसी तरह से जो देवी देवों का मन हर सकती है, वह समो देवियों मिल प्रभुको विचतित न जरा कर सकती हैं।१५। हे नाव दीप जितने जग के जो नजर हमारी जाते हैं, जरते जो तेल दाति द्वारा वायु लगते बुझ जाते हैं, पर नाथ जाप वह दीपक हैं जो त्रिभुवन के प्रकाशक हो, नि म जला करते निशदिन त्रिभुवन के तमी उपासक हो । १६ । हैं स्तत् प्रकाशो सूर्य जाप ग्रस सके न राहू पाप रूप, इफ समय एक सग तीन तोक का प्रकाशित होता स्वरूण, यह सूर्य मेघ से माच्छादित होकर दिन में छिप जाता है, पर है मुनीन्द्र वह सूर्य माप जो स्दा प्रकाश दिखाता है । १०॥ मुखवन्द्र जाप का हे स्वामी मोहान्धकार का नाश करे, राहू मैघो से दूर सदा नित त्रिभुवन में प्रकाश करे, पर यह साधारण चन्द्र प्रभु राहू मेघो से घिर जाता, इतने पर भी यह सिर्फ रात में ही प्रकाश कुछ दे पाता । १८। जब धान्य खेत में पक जाता जल को रहती परवाह नही, जल भरे बादलों को जग की रहती फिर किंचित चाह नही, बस उसो तरह मुसचन्द्र तेरा मज्ञान तिमिर जब हर लेता, तो सूर्य चन्द्रमा को पाने पर कोई ध्यान नही देता । १६ । मरिणयो पर पड़ने से प्रकाश की जामा जितनी बढ़ जाती, वह छटा कांच के टुकड़ों पर पड़ने से कभी न जा पाती, बस उसी तरह है देव भापका स्वपर प्रकाशक तत्व ज्ञान, वह अन्य देवतागो से है कितना उज्ज्वल कितना महान । २० ।

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