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जैत्र पूजा पाठ सप्रह
भूषण वैश खोसि लये माय, निज पासे राखे दुःख पाय । 'राय तपै सम्बोधी जोय, मन चिन्ता राखो मति कोय ॥ • और घणेही देहूं लाय, इम सुणि तिलकमती सुख पाय । दीप थकी जिनदत्त जु आय, बन्धुमती पतिसों बतलाय ॥ तिलकमती के अवगुण घणां, कहा कहूँ पति अब वा तणां। 'व्याह समै उठिगी किनि थान, परण्यो चोर तहां सुख ठान ॥
सो तस्कर भूपति के जाय, भूषण वेश चोर कर लाय। याकू वह दीन्हें तब राय, खोसि रखे मौ ढिग में लाय ॥'
सेठ देख कम्पित भन मांहि, तब ही राज स्थानक जाय ।। 'धरे जाय राजा के पाय, सब विरतन्त कह्यो सुणि राय ॥ . कडो वेश भूषण तौ आय, परि वह चोर आनिधौ लाय । इहि विधि सेठ सुणी नृप वात, चाल्यो निज घर कम्पित गात ।। साह सुतासों इह दच कह्यो, तू हमकू यह कुण दुःख दियो। पतिकू जाणे है अकि नाहिं, कयो द्वीप विन जाणूं काहि ॥ कवहूं दीपक हेति सनेह, मोकू मम माता नहिं देह । सेठ कहें किसही विधि जान, तिलकमती जब बहुरि बखान ॥ इक विधि कर मैं जान तात, सो इह सुण हमारी वात । जब पति आवे मो ढिग यहां, तब उनि पद धोक्त थी तहां ॥ धोवत चरण पिछ सही, और इलाज इहां अब नहीं। सेठ कही भूपतिसों जाय, कन्या तौ इस भांति वताय ॥ ऐसे सुणि तब वोल्यो भूप, इहतौ विधि तुम जाणि अनूप । तस्कर ठीक करण के काज, तुम घर आवेगे हम आज ॥ सेठ तबै अति प्रसन्न भयौ, जाय तैयारी करतो भयो। तब राजा परिवार वुलाय, तवही सेठ तणे घर जाय ॥
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