Book Title: Jain Pooja Path Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 427
________________ बेन पूजा पाठ संग्रह काना पोंडा पडा हाथ. यह, चूसै तौ रोवै। फले अनन्त जु धर्म ध्यान की, भूमिबिषे बोव ॥ केसर चन्दन पुष्प सुगन्धित, वस्तु देख सारी। देह परसते होय अपावन, निशदिन मल जारी ॥ १५ ॥ ७ आस्रव भावना। ज्यों सरजल आवत मोरी यों, आस्रव कर्मन को। दवित जीव प्रदेश गहै जब, पुद्गल भरमन को। भावित आस्रव भाव शुभाशुभ, निशदिन चेतन को। पाप पुण्य के दोनों करता, कारण बन्धन की ॥ १६ ॥ पैन मिथ्यात योग पन्द्रह, द्वादश अविरत जानो। पंचरु बीस कषाय मिले सब, सत्तावन मानो। मोहभाव की ममता टारे, पर परणत खोते। कर मोक्ष का यतन निरासव, ज्ञानी जन होते ॥१७॥ ८सवर भावना। ज्यों मोरी में डाट लगावै, तब जल रुक जाता। त्यों आस्रव को रोकै सवर, क्यों नहिं मन लाता। पञ्च महाव्रत समिति गुप्तिकर, वचन काय मन को। दश विध धर्म परीषह बाइस, बारह भावन को॥ १८॥ यह सब भाव सतावन मिलकर, आस्रव को खोते । सुपन दशा से जागो चेतन, कहा पड़े सोते ।। भाव शुभाशुभ रहित, शुद्ध भावन संवर पावै। डाट लगत ग्रह नाव पड़ी, मझधार पार जावै॥ १६॥

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