Book Title: Jain Pooja Path Sangraha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 438
________________ ४१० जैन पूजा पाठ माह जब सुगन्ध दशमी व्रत धर, तब कन्या अघ सचय हर । कसी विधि याकी मुनिराय, तव ऋपि भादवमास वताय ॥ सुदि पञ्चमि दिनसों आचरे, यथाशक्ति नवमीलो करें। दशमी दिन कीजै उपवास, ता करि होय अधिक अवनास ॥ । शुक्ल पक्ष दशमी दिन सार, दश पूजा करि वसु परकार । दश स्तोत्र पढ़िये मनलाय, दश मुख का घटसार बनाय ॥ ता में पावक उत्तम धरै, धूप दशांग खेय अघ हरै। सप्त धान्य को साथ्यो सार, करि तापरि दश दीपक धार ॥ ऐसे पूज कर मनलाय, सुखकारी जिनराज वताय ! ताते डह विधि पूजा करै, सो भवि जीव भवोदघि तरै ॥ दोहा-जिनकी पूज समान फल, हुवो न हसी कोय । स्वर्गादिक पद को कर पुनि देहै शिव जोय ॥ ४८॥ । चौपाई-दश संवत्सरलों जो कर, ताही के जिन गुण अवतरै। करें बहुरि उद्यापन राय, सुनहु सुविधि तुम मन वचकाय ॥ महाशान्तिक अभिषेक करेय, जिनवर आगे पुहुप घरेय । जो उपकरण धरे जिन थान, ताको भेद सुण चित आन ॥ दश जु वर्णको चन्दवो लाय, सो जिन विम्ब उपरि तणवाय। और पताका दश घन सार, वाजै घण्टानाद अपार ।। मुक्ति माल की शोभा करै, चमर युगल छवि अनुपम धरै । और सुणं आगें मनलाय, प्रभु की भक्ति किये सुख थाय ।। धूपदहन दश आरति आनि, सिंह पीठि आदिक पहचानि । इत्यादिक उपकरण मंगाय, भक्ति भाव जुत भव्य चढ़ाय ॥

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