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४१.
जैन पूजा पाठ सह
कमला चलत न पड जाय, मरघट तक परिवारा। अपने-अपने सुख को रोवें, पिता पुत्र दारा ।।१०। ज्यों मेले में पीजन, मिलि नेह फिर धरते। ज्यों तरुवर प रेन बसेरा, पंछी आ करते ।। कोस कोई दो कोस कोई, उड फिर थक-थक हारै। नाय अकेला हंस सग में, कोई न पर मारै।। १९॥
५ मिन्न (अन्यत्व) मावना ।। मोहरूप मृगतृष्णा जग में, मिथ्या जल चमक। मृग चेतन नित भ्रम में उठ-उठ, दो? धक-धकके। जल नहिं पावै प्राण गमाव, भटक-मटक मरता। वस्तु पराई मान अपनी, भेद नहीं करता ॥ १२॥ तू चेतन अरु देह अचेवन, यह जड तूझानी। मिले अनादि यवन बिछुडे, ज्यों पय अरु पानी ॥ रूप तुम्हारा सबसों न्यारा, भेद ज्ञान करना। जोलों पौरुष धर्के न तोलों, उद्यमसों चरना ।।१३।।
६ अशुचि भावना। तू नित पोखै यह सूख ज्यों, घोर त्यो मैली। निश दिन करै उपाय देह का, रोगदशा फैली। मात-पिता रज वीरज मिल कर, बनी देह तेरी। मास हाड़ नश लहू राघकी, प्रगट व्याधि घेरी ॥१४॥