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मानुपोत्तर लपत नहीं, मानुप जाती जात । जिनवाती निन्य सही. तीन भुवन विख्यात ॥ प्राणी० सो विवाति ना रहो, चली गन्दीरवर द्वीप। माननर निरिगे मिली, पायो न जाय महीप ॥ प्रासी० मानगर में भेटत, परी धरणि सिर भार। विजापनि म चरियो, देव भयो सुरसार ॥ प्रासी० दीप नन्दीश्वर दिनक, मे, पूजा वसु विधि ठान । करीमन व बाय से, माला पहनी प्रान ॥ प्राणी० विद्यापति को मा धरि, परवन रानी वात । त्रानन्द सो घर आइयो, नन्दीश्वर करि जात ।। प्रागी० रानी बोले रायसी, यह ती कवाई न होय । जिनवाणी मिथ्या नक्षी, निश्चय मन में सोय ॥ प्राणी० नन्दीश्वर जयमाल को, राय दिखाई आरिण। अव सांचों मोहि जानियो, पूजा करी बहुमान ॥ पारगी० रानी फिर तासों कहे, यह भव परसें नाहिं। पश्चिम सूरज उगई, हो विष अमृत माहि ॥ प्राणी० चन्द अङ्गारा जो भरे, निशा कमल उपजन्त ।' रवि अन्धेरा जो करे, वाल घी निकलन्त ॥ प्राणी०