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आधार || तुरंगम ।
नाग-दमनि तुम नाम की है जिनके जिस रनमाहिं भयानक रव कर रहे घनसे जगजाहिं मत्त मानों गिरि जंगम || अति कोलाहलमाहिं बात जहॅ नाहिं सुनीजै । राजनको परचंड देख बल धीरज छीजै ॥ नाथ तिहारे नामतैं सो छिनमाहिं पलाय | ज्यों दिनकर परकाशतें अंधकार विनशाय ॥ मारै जहा गयंद कुंभ हथियार विदारै | उमगै रुधिर प्रवाह वेग जलसम विस्तारै ॥ होय तिरन असमर्थ महाजोधा वल पूरे । तिस रनमें जिन तोर भक्त जे हैं नर खरे ॥ दुर्जय अरिकुल जीतके जय पावैं निकलंक | तुम पद पंकज मन बसै ते नर सदा निशंक ॥ नक्र चक्र मगरादि मच्छकरि भय उपजावै । जामैं चडवा अग्नि दाहतें नीर जलावै ॥ पार न पा जास थाह नहिं लहिये जाकी | गरजै अतिगंभीर लहरिकी गिनति न ताकी || सुखसों तिरै समुद्रको जे तुम गुन सुमराहिं । लोलक - लोलनके शिखर पार यान ले जाहिं ॥ महा जलोदर रोग, भार पीड़ित नर जे हैं वात पित्त कफ कुष्ट आदि जो रोग है हैं || सोचत रहैं उदास नाहिं जीवनकी आशा अति घिनावनी देह धेरै दुर्गंधि-निवासा ॥ } तुम पद- पंकज-धूलको जो लावैं निज-अंग |