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विन वांछा ए वचन आपके विर कदाचित है नियोग एकोपि जगत को करत लहज हित । कर न वांछा इसी चन्द्रमा पृरो जलनिधि सीतरश्मित पाय उदधि जल बड़े स्वयं सिधि तेरे गुण गम्भीर परम पावन जगमाई बहु प्रकार प्रभु है अनन्त कछु पार न पाई। तिन गुणान को अन्न एक याही विधि दीस। ते गुण तुझ ही मांहि और में नाहिं जगी । केवल थुति ही नाहिं भक्तिपूर्वक हम ध्यावत । सुमरण प्रणमन तथा नजनकर तुम गुण गावत ।। चितवन पूजन ध्यान नमनहरि नित आराधे । को उपायकरि देव सिद्धि पल को हम साधे ।
लोकी नगराधि देव नित नान प्रकाशी। परम ज्योति परमातम शक्ति अनन्ती भाली । पुण्य पापत रहित पुण्य के कारण स्वासी। नमो नमों जगवन्ध अवन्धक नाथ अकामी । रस सपरस अर गन्ध रूप नहि शब्द तिहारे । इनके विषय विचित्र भेद सब जाननहारे । सब जीवन प्रतिपाल अन्य करि है अगम्यगन । -मरण गोचर नाहि करी जिन तेरो सुमिरन ।।