________________
जन पूजा पाठ सग्रह
२९१
सवैया। मिथ्या-तम नाशवे को, ज्ञान के प्रकाशवे को। आपा-पर-भासवे को, भानुसी बखानी है। छहो द्रव्य जानवे को, वसुविधि भानवे को। स्वपर पिछानवे को, परम प्रमानी है। अनुभौ बताइवे को, जीव के जतायवे को। काहू न सतायवे को, भव्य उर आनी है ।। जहां तहां तारवे को, पार के उतारवे को।
सुख विस्तारवे को, ऐसी जिनवानी है ।। ५ ।। दोहा-जिनवाणी की स्तुति करै, अल्प बुद्धि परमान ।
पन्नालाल विनती करै, दे माता मोहि ज्ञान ॥ हे जिनवाणी भारती, तोहि जपू दिन रैन । जो तेरा शरणा गहै, सुख पावै दिन रैन । जा वानी के ज्ञानतै, सूझ लोकालोक । सो वानी मस्तक चढ़ो, सदा देत हों धोक ।।
वर्णी वाणी की डायरी से - ससार की दशा जो है यही रहेगो इसको देख कर उपेक्षा करनी चाहिये। फेवल स्वात्म गुण और दोषों को देखो। उन्हें देख कर गुणों को ग्रहण करो और दोपों को त्यागो।