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त्वत्पाद-पङ्कजमपि प्रणिधान-वन्ध्यो
वन्ध्योऽस्मि चेद्भवन-पावन हाहतोऽस्मि ॥४०॥ देवेन्द्र-बन्ध विदिताखिल-वस्तुसार
संसार-तारक विमो भुवनाधिनाथ । त्रायस्व देव करुणा-हद मा पुनीहि
सीदन्तमय भयद-व्यसनाम्बु-गशे ॥४॥ यद्यस्ति नाथ भवदति-सरोरुहाणा
भक्तोः फलं किमपि मन्तत-सञ्चिताया। तन्मे त्वदेक-शरणस्य शरण्य भूया'
स्वामी त्वमेव भुवनेऽत्र भवान्तरेऽपि ॥४२॥ इत्थं समाहित-धियो विधिवजिनेन्द्र
सान्द्रोल्लसत्पुलक-कञ्चुकितागभागाः । त्वद्धिम्ब-निर्मल-मुखाम्बुज-बद्ध-लक्ष्या
ये संस्तवं तव विभो रचयन्ति भव्याः ॥४३॥ जन-नयन-'कुमुदचन्द्र'-प्रभास्वराः स्वर्ग-सम्पदो मुक्त्वा । ते विगलित-मल-निचया अचिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते ॥४४॥
स्वाध्याय - स्वाध्याय आत्मशान्ति के लिये है, केवल ज्ञानार्जन के लिये नहीं। ज्ञानार्जन के लिये तो विद्याध्ययन है। स्वाध्याय तप है। इससे संवर
और निर्जरा होती है। कल्याण के इच्छुक हो तो एक घण्टा नियम से स्वाध्याय में लगाओ।
-वर्णी वाणी' से