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जेन पूजा पाठ साह
छट्ठो ज्ञातृकथा विसतारं, पांच लाख छप्पन हज्जारं ।। ३॥ सप्तम उपासकाध्यायनगं, सत्तर सहस ग्यारलख भंग। अष्टम अन्तकृतं दश ईसं, सहस अट्ठाइस लाख तेईसं ।। ४ ।। नवम अनुत्तरदश सुविशालं, लाख बान- सहस चवालं। दशम प्रश्न व्याकरण विचारं, लाख तिरान सोल हजारं ॥ ५ ॥ ग्यारम सूत्रविपाक सु भाखं, एक कोड़ चौरासी लाखे । चार कोडि अरु पन्द्रह लाखं, दो हजार सव पद गुरु शाखं ॥६॥ द्वादश दृष्टिवाद पनभेदं, इकसौ आठ कोडिपनवेदं । अडसठ लाख सहस छप्पन हैं, सहित पञ्चपद मिध्याहन हैं ।। ७ ।। इकसौ वारह कोड़ि वखानो, लाख तिरासी ऊपर जानो। ठावन सहस पञ्च अधिकाने, द्वादश अङ्ग सर्व पद माने ॥ ८॥ कोडि इकावन आठ हि लाखं, सहस चुरासी छह सौ भाखं । साढ़े इकीस शिलोक बताये, एक एक पद के ये गाये ॥६॥
दोहा जा वानी के ज्ञानमैं, सूझै लोक अलोक । 'द्यानत' जग जयवन्त हो,सदा देत हों धोक॥ ॐ ही श्रीजिनमुखोद्भवसरखतीदेव्यै महाघम् निर्बपामीति स्वाहा।