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जैन पूजा पाठ प्रह
भजन-होनहार बलवान नर होनहार होतव्य, न तिल भर टरती।
भई जरदकुवर के हाथ मौत गिरिधर की । श्री नेमिनाथ जिन आगम यह उच्चारी।
भई बारह वर्ष विनाशि द्वारिका सारी ॥ बचे फकत श्री बलभद्र और गिरिधारी।
गये निकलि देश से कथ तृषा अधिकारी ॥ भये निद्रावश वन बीच निवृत्ति हरि की।
भई जरदकुवर के हाथ मौत गिरिधर को॥ बलभद्र भरन गये नीर न नियरे पाया।
धरि भेष शिकारी जरदकुंवर तह आया ॥ लखि पीताम्बर पट पीत पद्म हरषाया।
तब मृगा जानि यदुवंश ने वाण चलाया ॥ लागत ही तीर उठि वीर पीर तरकस की।
भई जरदकुंवर के हाथ मौत गिरिधर. को॥ चित चकित होत चहुँ ओर निहारे वन मे।
किन मारा बैरी वारण आय इस वन मे ॥ यह वचन सुनत यदुकुंवर बिलखते मन में ।
श्री नेमिनाथ जिन वचन लखे ग मन में ॥ होनी से शक्ति न होवे गणधर मुनि की।
भई जरदकुंवर के हाथ मौत गिरिधर की ॥