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संकट हरण विनती
हे दोन श्रीपति का निधान जी । अपने थाना ने चार दया लगी ॥ टेक ॥ मालिक हो दो बदन के मिनराज आप ही । ऐो हुनर मारा तुमने दिया नहीं ||
बेजान में गुनाह
मे छन गया मही ।
केही पार मारिये नानं ॥ हे दोन० ॥ e ॥ मदन आप जिसने यह नहीं ।
हमे
है बुआ नहीं ॥
और पुराना है
यहीं ।
भीजिनेन्द्र देव
वृद्दी ॥ ६ ० ॥ २ ॥
पी जानी थी सुचना
सती ।
दी
आनंद
हाथ
गहा में पहने हो
गती ॥
मय में पुकार दिया था तुम्हें नती । भार
लिया है कृपा पती || हे दोन० || ३ ||
पायक प्रचण्ड गुट में गण्ड य रहा। गीता में शपथ लेने दो जयराम ने पहा ॥ तुम ध्यान पम्फे ज्ञानको पग धारती तहो ।
था नहा ।
तत्काल ही मर यन्त्र हुआ फल लहलहा ॥ हे दीन० ॥ ४ ॥ जय परदुशानन ने नपरी सभा के लोग रहते थे उम यछ भोर पीर में तुमने फरी
हा-दहा ||
सहा ।
परदा का सती का सुयश लगत मे रहा ॥ हे दीन० ॥ ५ ॥