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जैन पूजा पाठ समह
हरि समवशरण तब कीना, हम पूजत इत सुख लीना ॥
ॐ ह्रीं श्राश्विनशुक्राप्रतिपदि स्वलज्ञानप्राप्ताय श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अध्य• ।
लित अष्टमी मास अषाढ़ा, तब योग प्रभू ने छोड़ा | जिन लई मोक्ष ठकुराई, इत पूजत चरणा भाई ॥
ॐ ही भाषायां मोक्षमनलप्राप्ताय श्री नेमिनाथ विनेद्राय अघ० । अडिल्ल छन्द ।
कोडि बहत्तर सप्त सैकड़ा जानिये । सुनिवर मुक्ति गये ततै सु प्रमाणिये ॥ पूजौ तिनके चरण सु मनवचकाय । वसुविध द्रव्य मिलाय सुगाय वजाय कैं दोहा - सिद्धक्षेत्र गिरिनार शुभ. सव जीवन सुखदाय । कहीं तासु जयमालिका, सुनतहि पाप नशाय ॥१॥
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जयमाला ।
पद्धडी छन्द ! जय सिद्धक्षेत्र तीरथ महान, गिरिनारि सुगिरि उन्नत चखान । ह जूनागढ है नगर सार, सौराष्ट्र देश के मधि विधार ॥ २ ॥ तिस जूनागढ से चले सोइ, समभूमि कोस वर तीन होइ । दरवाजे से चल काल आघ, इक नदी वहत है जल अगाध ॥ ३ ॥ पर्वत उत्तर दक्षिण सुदोय, मधि बहत नदी उज्वल सु तोय | ता नदी मध्य इक कुण्ड जान, दोनों तट मन्दिर बने मान ॥ ४ ॥ वह वैरागी वैष्णव रहाय, भिक्षा कारण तीरथ कराय । इक कोस तहां यह मच्यो ख्याल, आगें इक वर नदी बहत नाल ॥ ५ ॥ वह श्रावकजन करते सनान, घो द्रव्य चलत आगें सु जान । फिर मृगीकुण्ड इक नाम जान, तहा वैरामिन के बने थान ॥ ६ ॥
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