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जैन पूजा पाठ सप्रह
हरिहर चक्रपति सुर दानव मानव पशु बस याकै। तिहि मकरध्वज नाशक जिनको पूजो पुष्प चढ़ाकै ॥ परम०
ॐ ही श्री कामकारादिध्वसनाय पुष्प निर्वपामोति त्याहा ४ : दुःखद त्रिजग जीवन को अतिही दोष क्षुधा अनिवारी। तिहि दुःख दूर करन को चरुवर ले जिन पूज प्रचारी ॥ परम० __ ॐ ही
श्रीधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामोति स्वाहा । ५६ मोह महातम मे जग जीवन शिव मग नाहि लखावै । तिहि निरवारण दीपक करले जिनपद पूजन आवै ॥ परम०
ॐ हो ऐ मोहान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामोति स्वाहा ६६ । उत्तम धूप सुगन्ध बना कर दश दिश मे महकावे । दश विधि बन्ध निवारण कारण जिनवर पूज रचावै ॥ परम०
ॐ ही प्रो अष्टकर्मदहनाय ५ निर्वपामोति स्वाहा ॥ ७ ॥ सरस सुवरण सुगन्ध अनूपम स्वच्छ महाशुचि लावै । शिवफल कारण जिनवर पद की फलसो पूज रचावै ॥ परम०
ॐ हो श्री मोक्षफलप्राप्तये फल निर्वपामोति स्वाहा ॥ ८ ॥ वसु विधिके वश वसुधा सबही परवश अति दुःख पावै । तिहि दुःख दूर करन को भविजन अर्घ जिनान चढ़ावै ॥ परम० ॐ होश्रो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्मपामीति स्वाहा । । ।
जयमाला. दोहा। आठ कर्म हनि आठ गुण प्रगट करे जिन रूप । सो जयवन्तो भुजवली प्रथम भये शिव भूप ॥