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कन पूजा पाठ मह
कुसुमलता छन्द |
जे जे जे जगतार शिरोमणि क्षत्रिय वश अशस महान । जे जे जे जग जन हितकारी दीनों जिन उपदेश प्रमाण || जै जै पति मुरु जिनके शत सुत जेष्ठ भरत पहिचान । के जे जे श्री ऋषभदेव जिनसों जयवन्त सदा जगजान ॥ e it जिनके द्वितीय महादेवी शुचि नाम 'सुनन्दा' गुण की सान । रूप शो सम्पन्न मनोहर तिनके सुत मुजवली महान || सवापद्रा शत धनु उन्नत तनु हरितवरण शोभा असमान । बेहरमणि पर्वत मानो नील कुलाचल सम घिर जान ॥ २ ॥ तेजवन्त परमाणु जगत में तिन कर रघो शरीर प्रमाण । शत योरत्व गुणाकर जाको निरसत हरि हर उर आन ॥ धीरज अतुल वज्र सम नीरज सम वीरामणि अति बलवान । जिन विलम्वि मनु शशि छषि लाने कुसुमायुध लीनों सु पुमान ॥ ३ ॥ बाल समे जिन बाल चन्द्रमा शशि से अधिक घरे
दुतिसार ।
अपार ॥
तो गुरुदेव पढाई विद्या शस्त्र शास्त्र मन पढी ऋषभदेव ने पोदनपुर के नृप कीने
दई अयोध्या भरतेश्वर को आप वने 'राजकाल षट्खण्ड महीपति सव दल ले बाहुबलि भी मन्मुख आये मन्त्रिन तीन
युद्ध दिये थाप ॥
दृष्टि नीर अरु मल युद्ध मे दोनों नृप कोनो बल धाप ।
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वृथा दानि रुक जाय सैन्य की यातें लडिये आपो-आप ॥ ५ ॥
भरत भुलवळी भूपति भाई उतरे समर भूमि में जाय ।
दृष्टि नीर रण थके चक्रपति मल्लयुद्ध तव करो अधाय ॥
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भुजवली
प्रभुजी
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कुमार ।
अनगार ॥ ४ ॥
चढि आये आप |