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जल सुचन्दन अक्षत पुष्प वरु ले धर । दीप अरु धूप फल अर्घ पूजा करें ।। पाण्डका और नीराजना वारती ॥ मचिय० ॥१०॥ कियो सिंगार सप अंग सम्मानको । आनि मातहि दियौ फेरि जिनराजको।। तृप्त नहि होतंग रूप को नीहारती ॥ सचिय० ॥११॥ ताल मृदग-धनि नप्त स्वर वाजहीं। नत्य ताण्डव करत इन्द्र अति छाजहीं। करन उत्साह सौं जिन सुपग ढारती ॥ सचिय० ॥१२॥ भव्यजन लोक जन्ममहोत्सव करें। आगिले जन्म के सकल पातक हरै ॥ भक्ति जिनराज की पार उत्तारती।
मचिय सुरपति सहित करहिं जिन आरती ॥१३॥ घत्ता-जिनवर वर माता, माननीया सुरेन्द्रेः।
स जयति जिनराजा "लालचन्द्र" विनोदी।. ॐ ही चर्षिगनिदिनगृपमाटितीर्धहरेभ्यो अनपदप्राप्तये भयं इत्याशीर्वाद ।
नव तिलक पूगा फरनेपाले को प्रथम नय तिलक फरना चाहिये। शिखा शीश की जानि, ललाट सु लीजिये। कण्ठ, हृदय अरु कान, भुजा गनि लीजिये। कुंख, हाथ अरु नाभि, सरस शुभ कीजिये। तव जिनवर को जजो, तिलक नव कीजिये ॥१॥