________________
___ॐ ही धातुकीखण्ड की पश्चिमदिश अचलमेरु के उत्तरदिश ऐरावततंत्र सम्बन्धी नचोवीसी के बहत्तरि जिनेन्द्र भ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥
__ सुन्दरी चन्द। द्वीप पुष्करकी पूरव दिशा, मन्दिर मेरुकी दक्षिण भरत-सा। ता विष चौबीसी तीन जू, अर्घ लेय जजों परवीन जू ॥
ॐ ही पुष्करद्वीप की पूर्वदिश मन्दिरमेरु की दक्षिणादेश भग्तक्षेत्र सम्बन्धी नौसचौबीसी के बहनरि जिनेन्द्र भ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ गिरि सुसन्दिर उत्तर जानियो, क्षेत्र ऐरावत सुबखानियो। ता विषै चौबीसी तीन ज़, अर्घ लेय पूजों परवीन ज़॥
ही पुष्करद्वीप की पूवदिश मदिरमेरु की ज्तरटिग ऐरावत्क्षत्र सम्बन्धी नीनचोबानो के ग्नरि जिनेन्द्र भ्यो अर्घ निर्वपार्मानि बह ॥ ८ ॥
पद्धडी छन्द । 'पश्चिल पुष्कर गिरि विद्यु तमाल,तादक्षिणभरतवन्योरसाल तामें चौवीसी है जु तीन, वसु द्रव्य लेय पूजों प्रवीन ॥
ॐ हों पुष्कराद्ध द्वीप की पश्चिमदिश विद्युन्मालीमेरु के दक्षिणदिग भरतक्षेत्र नम्वधी तीनचौवीसी के वहत्तरि जिनेन्द्र भ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ॥ याही गिरिके उत्तर जु ओर, ऐरावत क्षेत्र तनी सुठोर । ताले चौबीसी है जु तीन, वसु द्रव्य लेय पूजों प्रवीन ।
ॐ ही पुष्कराद्वीप की पश्चिगदिश विद्युन्मालोमेरु के उत्तरदिश ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी तीनचौवीसी के वहत्तरि जिनेन्द्र न्यो अर्घ निर्वपामीति खाहा ॥ १० ॥
कुण्डलिया। द्वीप अढाई के विषै, पांच मेरु हितदाय । दक्षिण उत्तर तासुके, भरतऐरावत भाय ॥ भरत ऐरावत भाय एक क्षेत्र के माहीं।