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जन पूजा पाठ उभ
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रविकर द्यतिसन्निभ दीपः प्रवलमोह घनांध निवारकैः । वृ०
ॐ अनेन्द्राय मोहन्यकार विनाशनाय दोष निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
स्वगुरु धूपभरे र्घटनिष्ठितः प्रतिदिशंमिलितालिसमूहकैः । वृ०
ॐी भी गृपमनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
सरस निचुकलांगलि दाड़िमैः कदलि पुङ्गकपित्थशुभैः फलैः । घृ०
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जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तचे फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥
सलिल गंध शुभाक्षत पुष्पकैश्चरु सुदीप सु धूप फलार्धकैः । जिनपतिं च यजे सुखकारकं, वदति मेरु सु चन्द्र यतीश्वरं । वृ०
ही थी नृपमनाय जिनेन्द्राय अनपदप्राप्तये अर्ध निषंपामीति स्थादा ॥ ९ ॥ प्रत्येक श्लोक पूजा
( भक्तामर स्तोत्र का एक एक श्लोक पढ कर नीचे लिखे क्रम से ॐ हीं घोल कर अर्ध चढाना चाहिये ।)
ही प्रणत देव समूह मुद्राममणि महा पापान्धकार विनाशकाय धी आदि परमेश्वराय अर्थ नियंपामीति स्पादा ॥ १ ॥
ॐ हो गणधर चारण समस्त रूपीन्द्रचन्दियसुरेन्द्रव्यन्तरेन्द्रनागेन्द्र चतुविध ! सुनीन्द्रस्वत चरणारविन्दाय श्री आदि परमेश्वराय अर्थ निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥ ॐ ही विगतबुद्धिगपारसहित श्री नानतुहाचार्य भक्तिसहिताय श्री आदि परमेश्वराय अयं निर्वणमीति स्वाहा ॥ ३ ॥
ॐ ही त्रिभुवनगुणसमुद्र चन्द्रकान्तमणितेजशरीरसमस्त सुरनाथ स्ववित श्री मादि परमेश्वराय अर्थ नियंपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥
ॐ ही समन्त गणधरादि मुनिपर प्रतिपालक मृगवालवत श्री आदिनाथ परमेश्वराय सर्व निर्मपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥
ॐ ही श्री नेिन्द्र चन्द्रभक्किसर्व सौख्य तुच्छमति बहु सुखदायकाय श्री दिनेन्द्राय आदि परमेश्वराय अपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
ॐ श्री अनन्त भद पातक सर्व विघ्नविनाशकाय तय, स्तुतिसौख्यदायकाय श्री आदि परमेश्वराय अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
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