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सब भाइन को दो समझाय, रक्षाबन्धन कथा मुनि का निज घर करो अकार, मुनि समान तिन देहु सबके रक्षा बन्धन बाध, जैन मुनिन की रक्षा इस विधि से मानो त्यौहार, नाम
सुनाय । अहार ॥ जान ।
सलुना है ससार ॥
घत्ता ।
मुनि दीनदयाला सब दुःख टाला, आनन्द माला सुखकारी । 'रघु सुत' नित वन्दे आनन्द कन्दे, सुक्ख करन्दे हितकारी ॥ ॐ ह्रो श्री विष्णुकुमार मुनिभ्यो अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ।
दोहा - विष्णुकुमार मुनि के चरण, जो पूजे धर प्रीत । 'रघु सुत' पावे स्वर्गपद, लहे पुण्य नवनीत ॥ इत्याशीर्वाद. |
हमारा कर्त्तव्य
■ बाल विवाह, अनमेल विवाह, वृद्ध विवाह और कन्या विक्रय या वर विक्रय जैसी घातक दुष्ट प्रथाओं का बहिष्कार करना ।
■ माता-पिता का आदर्श प्रदाचारी गृहस्थ होना ।
■ अपने बालकों को सदाचारी बनाना ।
■ सन्तति को सुशिक्षित बनाना ।
■ बालकों में ऐसी भावना भरना जिससे वे बचपन से ही देश, जाति और धर्म की रक्षा करना अपना कर्तव्य मम
।
- 'वर्णो वाणी' से