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बन पूजा पाठ सग्रह
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श्री खण्डगिरि क्षेत्र पूजा अंगवंग के पास है देश कलिंग विख्यात । तामें खण्डगिरि लसत है, दर्शन भव्य सुहात । दसरथ राजा के सुत अति गुणवान जी।
और मुनीश्वर पञ्च सैंकड़ा जान जी ॥ अष्ट-कर्म कर नष्ट मोक्षगामी भये।
तिनके पूजहुँ चरण सकल मंगल ठये॥ ॐ ही श्री कलिंगदेशमध्ये खण्डगिरि सिवरेत्र से सिद्धपद प्राप्त दशरय राजा के सुत सया पञ्चशतक मुनि ! अत्र अवतरभयतर संवौषट् आह्वानन । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । भत्र मम सन्निहितो भव भव षषट् सनिघापनम् ।
अथाष्टका अति उत्तमशुचि जल ल्याय, कञ्चन कलश भरा। करूं धार सुमन वच काय, नाशत जन्म जरा॥ श्री खण्डगिरि के शीश जसरथ तनय कहे।
मुनि पञ्चशतक शिव लीन देश कलिंग दहे॥ . ही श्री खण्डगिरि सिद्धक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ केशर मलयागिरि सार, घिसके सुगन्ध किया। संसार ताप निरवार, तुम पद वसत हिया ॥ श्री०॥
ही श्री खण्डगिरि सिद्धक्षेत्रेभ्यो ससारतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ मुक्ताफल की उन्नलान, अक्षत शुद्ध लिया। मम सर्व दोष निरवार, निजगुण मोह दिया॥श्री०॥ ॐहाँ भी खण्डगिरि सिद्धक्षेत्रेम्पो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्याहा ॥३॥
ले सुमन कल्पतरु थार, बुन-चुन ल्याय धरूं। तुम पद ढिग धरसहि, थाण काम समूल हरूं। श्री०॥ ॐ श्री खण्डमिरि सिसक्षेत्रेम्यो कामवाणविध्यशनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥