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जैन पूजा पाठ सप्रह
जय विमल नर्मू आनन्द कन्द जय सुपार्स न, हनि पास मन्द। जय अजित गये शिव हानि कर्म, जय पाव करी जुग उरग सर्म ।। पश्चिम दिस जानू टोक एव, वन्दे चहुँगति को होय छेव । नर सुर पद की तो कौन बात, पूजे अनुक्रमते मुक्ति जात ॥ जय नेमि तनू नित धरू ध्यान, जय अरि हर लीनो मुक्ति थान । जय मल्लि मदन जय शील धार, श्रेयास गये भव उदधि पार ॥ जय सुमति सुमति दाता महेश, जय पद्म नमूं तम हर दिनेश । जय मुनि सुवृत गुण गण गरिष्ट, जय चन्द्र करे आताप नष्ट । जय शीतल जय भव के आताप, जय अनन्त नम नशि जात पाप । जय सम्भव भव की हरो पीर, जय अभय करो अभिनन्दन वीर ॥ पूरव दिश द्वादश कूट जान, पूजत होवत है अशुभ हान । फिर मूल मन्दिरकू करू प्रणाम, पावै शिव रमनी वेग धाम ।
घत्ता छन्द । श्री सिद्ध सु क्षेत्र अति सुख देतं तुरतं भव दधि पार करं। अरि कर्म बिनासन शिव सुख कारन जय गिरवर जगता तारं॥
चाल छप्पय । प्रथम कथ जिन धर्म सुमति अरु शान्ति जिनन्दा। बिमल सुपारस अजित पार्श्व मेटै भव फन्दा ॥ श्री नमि अरह जु मल्लि श्रेयांस सुविधि निधि कन्दा। पद्म प्रभु महाराज और मुनि सुवृत चन्दा ॥