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जैन पूजा पाठ संप्रद
तिनके नाम सु लेत ही पाप दूर हो जाय । ते सब पूजू अर्घ ले भव भव को सुखदाय ।। ॐ हो श्री भरत क्षेत्र सम्बन्धी सिद्धक्षेत्र और अतिशय क्षेत्रेभ्यो अर्ध ।
सोरठा। दीप अढ़ाई मांहि सिद्धक्षेत्र जे और हैं। पूजू अर्घ चढ़ाय भव भव के अघ नाश हैं ।
अडिल्ल छन्द । पूजू तीस चौबीसी महासुख दाथ जू । भूत भविष्यत् वर्तमान गुण गाय जू ॥ कहे विदेह के बीस नमू सिरनाय जू ।
और जू अर्घ बनाय सु विघन पलाय ज ॥ ॐ ही श्री तीस चौवीसी और भूत भविष्यत् वर्तमान जोर विदेह क्षेत्र के वीस जिनेश्वर प्रर्प । दोहा-कृत्याकृत्यम जे कहे तीन लोक के मांहि ।
ते सब पूज अर्घ ले हाथ जोर सिरनाय ।। ॐ ही श्री ऊर्ध्वलोक मध्यलोक पाताललोक सम्बन्धी जिन मन्दिर जिन यालयेभ्यो नम अर्ध । दोहा-तोरथ परम सुहावनो शिखर सम्मेद विशाल । कहत अल्प बुधि युक्ति सै सुखदाई जयमाल ॥
अथ जयमाला, छन्द पद्धडी। जय प्रथम नमूं जिन कुन्थ देव, जय धर्म तनी नित करत सेव । जय सुमति सुमति सुधबुद्धि देत, जय शान्ति न नित शान्ति हेत ॥