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श्री गिरनार सिद्धक्षेत्र पूजा
दोहा - वन्दों नेमि जिनेश पद, नेमि-धर्म दातार । नेम धुरन्धर परम गुरु, भविजन सुख करतार ॥ जिनवाणी को प्रणमि कर गुरु गणधर उरधार । सिद्धक्षेत्र पूजा रचों, सब जीवन हितकार । ऊर्जयन्त गिरिनाम तस, ह्यो जगत विख्यात गिरिनारी तास कहत, देखत मन हर्पात ॥ सिधा सुन्दरी छन्द ! गिरि सु उन्नत सुभगाकार है, पञ्चकूट उत्तंग सुधार है । मनोहर शिला 'सुहावनी, लखत सुन्दर मनको भावनी ॥ अवर कूट अनेक घने तहां, सिद्ध थान सु अति सुन्दर जहाँ । देखि भरिजन मन हर्षावते. सकल जन वंदन को आवते ॥
छन्द ।
तह नेमकुलाग व्रत तप धारा, कर्म विदारा शिव पाई । मुनि कोटि बहत्तर सात शतक घर तागिरि ऊपर सुखदाई ॥ है शिवपुरवासी गुणके राशी विधि धिति नाशी ऋद्धिधरा । तिनके गुण गाई पूज रचाऊँ, मन हर्षाऊँ सिद्धि करा ॥ दोहा - ऐसो क्षेत्र महान तिहिं पूजों मन वच काय ।
त्रय वार जुकर थापना, तिष्ठ तिष्ठ इत आय ॥ *हीं भी गिरनार मित्र । ध अन्तर अवतर गपीपटू ।
ॐ श्री गिरवार मित्र । अत्र तिष्ठ तिष्ठत कन्ठः स्थापन । * गिरनार सिद्धक्षेत्र । अत्र मम सन्निहितानि भय भय पपटू
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