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जैरहद
श्री वासुमूल्य तिन जु पाल, दादरम तीर्षका विशाल ॥ भव मोग देने विरत होप, वय वाल्लाहि ही नाय सोय । सिड्न ननि नहान भार तीन, तप हान्न विध उप्रोष जीन ॥ तह मोन सत्रय आयु ह दन प्रति पूरे ही यह। अंगी अन आम होय, गुन नवन नाग नवनाहि सोय । सोलह र क इस षट् इन इक इक इम इन वन सहय। पुनि सनयान इन लोम टार, वाइनभ्यान सोलह द्विारा है अनन्तु ऋष्टय युन्ज स्वाल पायो र सुखद नयोग डान.! नह काल गिोचर नबग युमात हि सन्य इकनहि त्य
काल दुविधा अनिय कृय. जर पोषे भाव झवि धान्य नृपा इस मा आय की जान, जिन योगन की नुमति हान ।। ताही घत ते सिध्यान ण, सुकन्यान निमसे जिताय । ह कुबल नरय नारा इ बहचर विहि पनि । तेरह न3 वरन सनय न्मार, न श्री जगन्दर प्रहार ।
पनि अवनी इक जन्य नद्धि, निवसे पार निव चल ऋद्धिा युन गु ऋतु प्रमुर अमित गुर. है हे दा ही उनहि केन। नहीं हैं जो थाना पवित्र, लेप गायो विचित्र । मैं तुज निज नस्तन त्यावं. बन्दों पुनि-पुनि सविनाय। ताही पद वांडा उर धार. वर व वाह बुद्ध विहार
दोहा श्रीचन्पापुर जो पुल्प. पूजे सन बच काय ! वगि दौल तो पाय ही तुख सम्पति अधिनाय !!