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जैन पूजापाठ
वहुविधिफल ले तिहुँकाल, आनन्द रावत हैं । तुम शिवफल देहु दयाल, तुहि हम जाचत है ॥ नंदी० ॥८॥
ॐ ही श्री नन्दोपको पूर्वदक्षिणपश्चिमोत्तरे द्विपचाश ज्जिनालयस्य जिनप्रतिमाभ्यो गोपनिपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥
यह अर्ध कियो निज-हेत, तुमको अरपतु हों । 'धानत' कीजो शिवखेत, भूमि समरपतु हों ॥ नंदी० ॥ ॥
દર્
ॐ ही भी नन्दीश्वर द्वीपे पूर्वदक्षिणपश्मिनां द्विवाज्जिनानयम्य जिनप्रतिमाभ्यो निर्वपामीति ।
जयमाला.
दोहा - कार्तिक फागुन साढ़के, अन्त आठ दिनमाहिं । नन्दीश्वर सुर जात हैं, हम पूजें इह ठाहिं ॥१॥
छन्द
एक मौसठ फोडि जोजन महा । लाख चौरासिया एक दिशमे लहा ॥ आठ द्वीप नन्दीश्वर भारवर । भौन यावन्न प्रतिमा नमों सुखकरं ॥ चारदिशि चारअल गिरि राजही । महम चौरासिया एक दिश छाजहीं ॥ ढोलनम गोल ऊपर तले सुन्दर । भौन चावन्न प्रतिमा नमों सुखकरं || एक इक चारदिशि चार शुभ बावरी । एक इक लाग जोजन अमल जल भरी ॥, चहुँ दिशा चार वन लास लोजन वर । भौन बावन्न प्रतिमा नमो सुसकर || मोल वापीन मधि मोलगिरि दधिमुस । सहस दश महा जोजन लगत ही सुख ॥ बावरी दोन दोमांहि दो रतिकर । भौन बावन्न प्रतिमा नमों सुखकर || शैल बत्तीस एक सहस जोजन कहे। चार सोलें मिलें सर्व बावन लहे || एक इक सीस पर एक जिनमंदिर। भौन वावन्न प्रतिमा नमों सुखकर ॥
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