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जैन पूजा पाठ नग्रह
पानी गिलाद न नारि अनुचि ललि, धरम गुरु न परख्थेि । पर-झोप जिये धरम डिगते हो, लुधिर कर हरखिये ।। चर संघको वात्सल्य जीज, धरम की परमावना । गुण पाठसा गुन आठ लहिक, इहां फेर न आना ॥ २ ॥ ॐ ही सप्टान उहिमगितिटोपहितन्न्दर्शनाय पूार्च निपानीति साहा।
सम्पन्जान पूजा दोहा-भेद जाके उगट, शेय-प्रमानान-सान।
लोह-ताल-हर-चंद्रमा, लोई, सम्यकज्ञान ॥१॥ ॐ ही अष्टविव सन्चालान ! जन अव जर बौ। ॐ ही सप्टविध उन्यजान । बत्र दिन्टि । ॐ ही अष्टविध सन्यजान ! बन न्न सन्निहिलो व नव ज्ण्ट । लोरठा-तीर लुगंध सपार, त्रिपा हरे जल भरकरै।
लल्यज्ञान विकार, आठ-सेद पूजौं लक्षा॥१॥ ॐ ही अष्टविय सन्दजानाय जल निपानाति स्वाहा ॥ १ ॥ जलकेशर घनलार, ताप हरे शीतल कर ।। ल० ॥२॥
ही अष्टविध सन्दजानाय चन्दन निर्वपानीति स्वाहा ॥२॥ अक्षत अयूए निहार, दारिद नाशे सुख सरे । स० ॥३॥ ७ ही अप्टविव सन्दरज्ञानाय स्लतान दिपानीति स्वाहा ॥ ३ ॥ पुहुप सुवाल उदार, खेद हरै मन शुचि करै ॥ ॥४॥ ॐ ही अष्टविव सम्बनानाय पुष्प निर्वपानीति वाहा ॥ ४ ॥