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जन पूजा पाठ साह
जाकी सुगन्ध थकी अहो अलि गुंजते आवे घने। सो मलय संग घसाय केसर पूज पद जिनवर तने ॥ भव आताप निवारने को लीजिये सुध भावसों ॥ सoli
ॐ ही श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सेतो बीस तीर्थङ्करादि असंख्यात मुनि मुक्ति पधारे, भवप्रातापविनाशनाय चन्दन ॥२॥ अक्षत अखंडित अतिहि सुन्दर जोति शशि सम लीजिये। शुभ शालि उपज्वल तोय धोय सु पूज प्रभु पद कीजिये । पद अक्षय कारण लेय भविजन शुद्ध निरमल भावसों ॥ स०
ॐ ही श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सैतो बीस तीर्थतरादि असख्यात मुनि मुक्ति पधारे, अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं० ।। ३ ।। है मदन दुष्ट अत्यन्त दुर्जय हते सबके प्रान ही। ताके निवारण हेत कुसुम मंगाय रंजन घ्रान हो । जाको सुवास निहार षट्पद दौरि आवे चावसों ॥ सoll
ॐ ही श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सैती बीस तीर्थक्रादि असख्यात मुनि मुक्ति पधारे, कामवाणविध्वसनाय पुष्पं० ॥ ४ ॥ रस पूर रसना घ्रान रंजन चक्ष प्रिय अति मिष्ट ही। जिनराज चरण चढ़ाय उत्तम क्षुधा होवे नष्ट ही ॥ भरि थाल कञ्चन विविध व्यञ्जन लीजिये सुध भावसों ॥ स०॥
___ॐ ह्री श्री सम्मेद शिखर सिद्धक्षेत्र परवत सेती बीस तीर्थकरादि असंख्यात मुनि मुक्ति पधारे, क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य० ॥ ५॥ त्रैलोक्यगर्मित ज्ञान जाको मोह निजवश कर लियो । अज्ञान तममें पड्यो चेतन चतुरगति भरमन कियो ।