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जैन पूजा पाठ सप्रह
मैं तुम चरण कमल गुणगाय, बहुविधि भक्ति करी मनलाय | जनम जनम प्रभु पाऊ तोहि, यह सेवा - फल ढीजें मोहि ॥ १४ ॥ कृपा तिहारी ऐसी होय, जामन मरण मिटावी मोय | बार-बार मैं विनती करूं, तुम सेवा भवसागर तरूं ।। १५ ।। नाम लेत सब दुःख मिट जाय, तुम दर्शन देख्यो प्रभु आय । तुम हो प्रभु देवन के देव, में तो करूं चरण तव सेव ॥ १६ ॥ जिन पूजा तँ सब सुख होय, जिन पूजा सम अवर न कोय । जिन पूजा तैं स्वर्ग विमान, अनुक्रम तैं पावै निर्वाण ॥ १७ ॥ मैं आयो पूजन के कान, मेरो जन्म सफल भयो आज । पूजा करके नवाऊं शीश, मुझ अपराध क्षमहु जगदीश ॥ १८ ॥ दोहा - सुख देना दुःख मेटना, यही तुम्हारी चान । मुन लीज्यो भगवान ॥ १६ ॥ आदि मध्य अवमान |
मो गरीब की वीनती, पूजन करते देव की, सुरगन के सुख भोग कर, जैमी महिमा तुम विषै, जो सूरज मे जोति है, नाथ तिहारे नामतें, ज्यों दिनकर परकाशर्तें, बहुत प्रशसा क्या करू,
पायें मोक्ष निदान ॥ २० ॥ और घरै नहि कोय | नहिं तारागण सोय ॥ २१ ॥ अघ छिनमांहि पलाय | अन्धकार विनशाय ॥ २२ ॥ मैं प्रभु बहुत अजान | पूजाविधि जानू नही, शरण राखि भगवान ॥ २३ ॥