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उन पूजन पाठ सप्रह
सनन सननं सननं नभमैं, इक रूप अनेक जु धारि भर्मे ॥ ७॥ कई नारि सु बीन बजावति हैं, तुमरो जस उज्ज्वल गावति है। करतालविष करनाल धरै, सुरताल विशाल जु नाद करें ॥ ८ ॥ इन जादि अनेक उछाह भरी, सुरभक्ति करै प्रभुजी तुसरी । तुमही जगजीवनके पितु हो, तुमही विन कारणके हितु हो ॥ ६ ॥ तुमही सब विन-विनाशन हो, तुमही निज आनंद भासन हो । तुमही चित चिंतित दायक हो, जगमांहि तुम्ही सर लायक हो ॥१०॥ तुमरे पर मंगल मांहि सही, जिय उत्तम पुण्य लियो सवही । हमको तुमरी शरनागत है, तुमरे गुणमें मन पागव है ।। ११ ।। प्रभु मो हिय आप सदा बसिये, जब लौं वसु कम नहीं नसिये । त्व लौ तुम ध्यन हिये दरतो, तवलौं श्रुत चितन चित्तरतों ।। १२ ॥ तरलौं व्रत चारित गहतु हों, तबलौं शुभ भाव सुहागतु हों। तक्लों ममसंगति नित्त रह , तवलों मम संजम चित्त गह ॥ १३ ॥ जबलौं नहिं नाश करौं अरिको, शिव नारिवरों समता धरिको। यह घो तवलौं हमको जिन जी, हम जाचत हैं इतनी सुनजी ॥ १४ ॥
छत्ता श्रीवीर जिनेशा नमित सुरेशा नाग नरेशा भगतिभरा। 'वृन्दावन ध्यावै विघन नशावै, वांछित पा शर्मवरा ।। मों ही श्रीमहावीर जिनेन्द्राय महापं निर्वामीति स्वाहा । दोहा-श्री सनसतिके जुगलपद, जो पूजै धरि प्रीत ।
'वृन्दावन' सो चतुर नर, लहै मुक्ति नवनीत ।।