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जैन पूजा पाठ मग्रह
वाणवितरजोइसियकप्पवासियत्ति चउविहा देवाः सपरिवारा दिवेणगंधेण दिव्वेण पुफ्फेण दिव्वेण धुन्वेण दिन्वेण चुण्णेण दिव्वेण वासेण दिन्वेण राणेण णिच्चकालं अच्चंति पुज्जंति वंदंति णमस्संति । अहमवि इह सन्तो तत्थसंताइ णिच्चकालं अच्चेमि पुज्जेमि चन्दामि णमस्सामि। दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं जिणगुणसम्पत्ती होउ मज्झं ।। अथ पौलिक-माध्याह्निक-आपराह्निक देववंदनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थ भावपूजावंदनास्तवससेतं श्रीपंचमहागुरुभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् ।
इत्याशीर्वाद पुष्पाजलि क्षिपेत् । ताव कायं पावकम्मं दुचरियं वोस्लरामि । णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णलो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहणं । (यहाँ पर नौ बार णमोकार मत्र जपना चाहिये)
आत्मशक्ति - जो कुछ है सो आत्मा में, यदि वहा नहीं तो कहीं नहीं। - आत्मा अनन्त ज्ञान का पात्र है और अनन्त सुख का धारी है
परन्तु हम अपनी अज्ञानतावश दुर्दशा के पात्र बन रहे हैं। - आत्मा ही आत्मा का गुरू है और आत्मा ही उसका शत्रु है । - अन्तरग की बलवता हो श्रेयोमार्ग की जननी है।
-'वर्णी वाणी' से