Book Title: Jain Jyotirgranth Sangraha
Author(s): Kshamavijay
Publisher: Mulchand Bulakhidas Shah

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Page 15
________________ ६ । जैनज्योतिर्ग्रन्थसंग्रहे हारिभद्रीया लग्नशुद्धिः। तीसइभागेसु छव्वग्गो हुंति पंचवग्गो वा । सोमग्गहाण तणओ हियइच्छियकज्जसिद्धिकरो ॥ ८५ ॥ अन्ने नवंसगं चिय एगं चित्तूण सोम३ गहतणयं । पभणंति लग्गसुद्धिं विणा वि छव्वग्गसुद्धीए ॥ ८६ ॥ गिहहोराई लग्गे गहस्स जं जस्स संति होइ । तं संपइ पयडत्थं वुच्छं अबुहाण बोहत्थं ॥ ८७ ॥ कुजसुक्कबुहिंदुरविबुहसियकुजगुरुसणीसणी६ गुरूणं । मेसाईआ उ बारस लग्गाण घराई जहसंखं ॥ ८८ ॥ लग्ग• स्सद्धं होरा सा पढमा दिणयरस्स विसमंमि । बीआ य तहिं ससिणो विवजएणं समे लग्गे ॥ ८९ ॥ दिकाणो अ तिभागो सो पढमो नियय९रासिअहिवइणो । बीओ पंचमपहुणो तइओ पुण नवमगिहवइणो ॥९॥ मेसे मेसाईआ विसंमि मयराइया नवंसाओ। मिहुणम्मि तुलाईया कक्के कक्काइया हुंति ॥ ९१ ॥ पुण मेसमयरतुलकक्कडाइया चउसु सीहमाईसु । १२ एवं धनुहाईसु वि नवंसया हुंति नायव्वा ॥ ९२ ॥ बारसभागो पयडो सो पढमो निअरासिणो होइ । बीओ बीयस्स उ जाव बार बारसस्स भवे ॥ ९३ ॥ कुजसणिगुरुबुहसुक्का पण पणे अर्ड सत्त पंचे अंसाणं । १५विसमे तीसंसं पहू विवजएणं समे लग्गे ॥ ९४ ॥ ससहरगुरुबुहसुक्का सोमा सामन्नओ मुणेयव्वा । सेसा य हुंति कुरा तजुअघुहखीणससिणो अ॥ ९५ ॥ उदयत्थसुद्धिमिन्हि भणामि उदओ नवंसगो इत्थ । १८ तम्मिय लग्गविइन्ने सनाह दि8 उदयसुद्धी ॥ ९६ ॥ लग्गे नवंसगो जो तस्सत्तमठाण अहिवई पिच्छे । लग्गा सत्तमठाणं जइ तो इह अत्थसुद्धि त्ति ॥ ९७ ॥ वयगहणपइट्ठासु उदयत्थ विसुद्धिवजि पि सुहं । २१ मन्नंति केइ लग्गं तं च मयं बहुमयं नेह ॥ ९८ ॥ इह उदयत्थविसुद्धी गहदिट्ठीए विणा न संभवइ । एएण पसंगेणं गहदिट्ठी संपवक्खामि ॥९९।। सट्ठाणाओ दसमं ठाणं तइयं च पायदिट्ठीए । पिच्छंति गहा नवमं सपंचमं २४ अद्धदिट्ठीए ॥ १०० ॥ पउणाए दिट्ठीए चउत्थयं अट्ठमं च पिच्छंति । सव्वाए सत्तमयं सुहासुहफलं च दिट्ठिसमं ॥ १०१ ॥ लग्गस्स गहा बलिणो हवंति ते जत्थ संठिया ठाणे । तं वुच्छं दिक्खाए पढमं पच्छा .२७ पइट्ठाए ॥ १०२ ॥ दिक्खा लग्गे दो पंच छट्ठ इक्कारसो रवि सुहओ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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