Book Title: Jain Jyotirgranth Sangraha
Author(s): Kshamavijay
Publisher: Mulchand Bulakhidas Shah

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Page 14
________________ । जैनज्योतिम्रन्थसंग्रहे हारिभद्रीया लमशुद्धिः। ५ निययरिक्खस्स । सत्तम पंचम नवमं बावीसइमं च लत्तंति ॥६७॥ अस्सेस महा चित्ता अणुराहा सवण रेवई होइ । जइमा रविरिक्खाओ पाओ अस्सिणीइ तइममि ॥ ६८ ॥ आइच्चो जत्थ ठिओ तत्तो अणुराह ३ जइमिया होइ । तत्तो छठे छठे दस बीए पंचमे पाओ ॥ ६९ ॥ पढमो छट्ठो नवमो दसमो तह तेरसो अ पन्नरसो । सत्तरसे-गुणवीसो सत्तावीसो अ एयाणं ॥ ७० ॥ जो जोगो तस्संखं रिक्खं जइमं हविज ६ रविरिक्खा । तइमे ससिरिक्खे अस्सिणीइऊ इक्कग्गलो होइ ॥ ७१॥ तिरियं तेरस रेहा एका तम्मज्झगामिणी उड्डे । काऊणं चक्कमिणं सिररिक्खं दिज तस्स सिरे ॥ ७२ ॥ विसमे जोगे इकं अट्ठावीसं समंमि ९ दिजाहि । अद्धीकयंमि तंमि उ जं तं इह मुणसु सिररिक्खं ॥ ७३ ॥ अस्सिणि अणुराहा वि य मियसिर मूलो पुणव्वसू पुस्सो । असलेस महा चित्ता विक्खंभाईसु सिररिक्खा ॥ ७४ ॥ सिररिक्खाउ कमेणं १२ सत्तावीसं पि दिज रिक्खाइं । रेहासु तासु कमसो रिक्खेसु अ ठवसु ससिसूरे ॥ ७५ ॥ एकाए रेहाए जइ दुन्नि वि डंति चंद आइच्चा । एकग्गलो हु एवं जायइ नक्खत्तदोस त्ति ॥ ७६ । सगुणं पुण विनेयं १५ रिक्खं रविजोगसंजुअं तं च । रविरिक्खाओ चउत्थं छ-नव-दस तेरसं वीसं ॥ ७७ ॥ इत्तो वि लग्गसुद्धी सा पुण छवग्गसुद्धिओ होई। उदयत्थसुर्खिओ तह जहुत्तगहबलगुणेणं च ॥ ७८ ॥ गिह होरा दिक्काणा १८ नवं बारसे तीस अंसया य जहिं । सोमग्गहाण तणपा छवग्गसुद्धी तहिं लग्गे ॥ ७९ ॥ जइ पुण छवग्गसुद्धी संभवइ न चेव कह वि लग्गम्मि । तो पंचवग्गसुद्धी विसुद्धिहेऊ वि लग्गस्स ॥ ८० ॥ एसा २१ य बारसहं लग्गाणं जंमि तीसइ विभागे । संभवइ तयं वुच्छं लग्गपमाणं कहेऊणं ॥ ८१ ॥ दोईगुणवीस दोएंगवन्न सय तिन्नि तिजुअतेऔला । सँगैयाल संत्ततीसा मेसाइ पला कमुक्कमओ ॥ ८२ ॥ विसं २४ मयरोण चउदसे अहमए मीण-कर्क कन्नाणं । भायम्मि बारसे विच्छियस्से कुंभस्स छन्वीसे ॥ ८३ ॥ चउवीसमे तुलाए मेसस्सिगवीसमंमि भागम्मि । सीहस्स द्वारसमे धणमिहुणाणं च सत्तरसे ॥ ८४ ॥ इय २७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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