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मुख्य बात है कि यह शोध-प्रबंध, भविष्य के शोधार्थियों के लिए, बहुत ही प्रामाणित और सुगम आघार बनेगा।
मेरी कल्पना के अनुसार, नवम अध्याय के बाद, यदि तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत करने का एक और अध्याय रहता तो शोध प्रबंध की उपयोगिता बढ़ती। इस अध्याय में "प्रायोगिक"निष्कर्षों को समाविष्ट किया जा सकता था । फलस्वरूप भावी शोध के लिए कुछ क्षेत्र इंगित हो जाते। अभी "ध्यान" पर काफी प्रयोग चल रहे हैं। नये-नये वैज्ञानिक सिद्धान्तों का, तथा नई-नई शारीरिक और मानसिक जानकारियों का सहारा लिया जा रहा हैं । क्रमवार प्रायोगिक शोध भी हो रही हैं। उनकी स्थितियों का संकलन हो सके तो अच्छा हैं।
चूंकि विषय विकास-यात्रा का ही हैं, अतः आज की हो रही शोध को इसीलिए शायद छोड़ दिया गया है।
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