________________ की उत्तम कला सिखाते हैं। चौथे अध्याय में गृहस्थाचार का अर्थशास्त्रीय अध्ययन किया गया है। भगवान महावीर ने सद्ग्रहस्थ के लिए बारह व्रतों की जो व्यवस्था दी है, वह व्यवस्था व्यक्ति को एक नीतिवान मनुष्य और श्रेष्ठ नागरिक बनाती है। सुदृढ़ आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था के लिए आगमों में वर्णित गृहस्थाचार का अत्यधिक महत्व है। जैनाचार्यों ने गृहस्थाचार को युगानुकूल प्रस्तुतियाँ दीं। ग्राम धर्म, नगर धर्म, राष्ट्र-धर्म, औदार्य-भाव, व्यसनमुक्ति, मार्गानुसारी के गुण आदि का आर्थिक विवेचन अभिनव आर्थिक-विवेक और कर्तव्य-बोध पैदा करता है। समाज और धर्म दोनों के लिए उज्ज्वल आर्थिक चरित्र बहुत आवश्यक है। . पाँचवें अध्याय में आगमिक सिद्धान्त और दर्शन का आर्थिक विवेचन किया गया है। कर्मवाद, आत्मवाद, अनेकान्त, अहिंसा आदि सिद्धान्तों के आगमिक आधार अत्यन्त मौलिक और वैज्ञानिक हैं। उन्हीं बुनियादी आधारों पर संस्कृति का भव्य प्रासाद खड़ा है। इस अध्याय में अहिंसा के शाकाहार पक्ष और संयम के ब्रह्मचर्य पक्ष का आर्थिक मूल्यांकन किया गया है; जो हिंसा, भोग और विलासिता पर खड़ी व्यवस्था के लिए बहुत समाधानकारी है। छठे अध्याय में आगमिक और आधुनिक अर्थशास्त्र पर विचार किया गया है। इस अध्याय में भगवान महावीर के अर्थशास्त्रीय व्यक्तित्व के बाद उनके अपरिग्रह दर्शन पर चिन्तन किया गया है। उसके बाद मध्ययुगीन व्यवस्थाओं पर विहंगम दृष्टिपात किया गया है। तत्पश्चात् विभिन्न आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं की समीक्षा और उनके साथ आगमिक अर्थशास्त्र की तुलना की गई है। अन्त में, उपसंहार में सभी अध्यायों का सार प्रस्तुत किया गया है। सार रूप में आगमिक अर्थशास्त्र व्यक्तिगत स्तर पर श्रम और स्वतन्त्रता, कौटुम्बिक स्तर पर स्नेह और सहयोग, सामाजिक स्तर पर समता और समानता, व्यावसायिक स्तर पर निष्ठा और प्रामाणिकता, राष्ट्रीय स्तर पर कर्तव्य और कुशलता तथा वैश्विक स्तर पर शान्ति और पर्यावरण-संरक्षण को सुनिश्चित करता है। ___ जैन आगमों में आर्थिक चिन्तन तथा आगमों के आचार-दर्शन का अर्थशास्त्रीय मूल्यांकन विषय पर बहुत कम कार्य हुआ है। इस सम्बन्ध में डॉ. जगदीश चन्द्र जैन की पुस्तक 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज', आचार्य श्री महाप्रज्ञ की पुस्तक 'महावीर का अर्थशास्त्र', डॉ. कमल जैन की पुस्तक 'प्राचीन जैन साहित्य में आर्थिक जीवन' तथा डॉ. दिनेन्द्र चन्द्र जैन की पुस्तक 'इकोनोमिक लाइफ इन ऐंश्येण्ट इण्डिया एज डेपिक्टेड इन जैन कैनोनिकल (xviii)