Book Title: Jain Agam Granthome Panchmatvad
Author(s): Vandana Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ भूमिका परम्परा के ही महाभारत आदि ग्रन्थ भी एतद्विषयक प्रचुर सामग्री उपलब्ध कराते हैं। वहाँ पूरकता और प्रामाणिकता के लिए उपयोगी सामग्री प्राप्त होती हैं, जिससे जैन तथा बौद्ध धर्म के तत्कालीन स्वरूप का भी पता चलता है। इन्होंने विरोधी मतों में सामंजस्य स्थापित करने का पूरा प्रयत्न किया। महावीर युग में ही 363 मतवादों का उल्लेख मिलता है। बाद में उनकी शाखा-प्रशाखाओं का और विस्तार होता गया-वैसे सिद्धान्तों में क्रिया, अक्रिया, विनय, अज्ञान, पंचभूत, एकाद्वैत, अकारक, आत्मषष्ठ, पंचस्कंध, चतुर्धातु, तज्जीव-तच्छरीरवाद, आत्मकर्तृत्व इत्यादि विषय मुख्य थे। इनको लेकर वे धर्मनायक जनसमूह में बोलते, उपदेश करते थे। इसीलिए ये विषय वाद का रूप ले चुके थे। ये वाद तब के हैं, जब तद्गत सिद्धान्त किसी परिपूर्ण दर्शन का रूप प्राप्त किये हुए नहीं थे। अतः व्याख्याकारों-भद्रबाहु द्वितीय, जिनदासगणी महत्तर, शीलांकसूरि आदि ने विभिन्न वादों को चार्वाक, सांख्य, न्याय, बौद्धादि विभिन्न दर्शनों के साथ बड़ी ही कुशलता के साथ जोड़ा है। 'वाद' शब्द के अन्तर्गत सैकड़ों प्रकार हैं। किसी भी शब्द के साथ 'वाद' शब्द लगा देने से एक प्रकार का 'वाद' एक विशेष मत, संकेतित हो जाता है, जैसे आजकल अंग्रेजी में 'इज्म' ism शब्द जोड़ देने से एक-एक दर्शन में बहुत-बहुत वादों के भेद अन्तर्गत हो रहे हैं। वाद शब्द संस्कृत में भ्वादिगण के अन्तर्गत निरूपित परस्मैपदी वद् धातु से घय् प्रत्यय लगकर बनता है। वद् धातु बोलने के अर्थ में प्रयुक्त है। भाषाशास्त्र के अनुसार वाद शब्द का सामान्य अर्थ किसी विषय पर आख्यान करना है। इसके लक्षणागम्य अर्थ के अनुसार किन्हीं सिद्धान्तों पर आधारित एक दार्शनिक या तात्विक परम्परा को वाद कहा जाता है। इन 363 जैनेतर मतों का प्रचारित होना निःसंदेह संदिग्ध है, किन्तु कतिपय मतों का प्रचलित होना अवश्य निःसंदिग्ध है। स्थिति ऐसी बनी कि आगम की साक्षी से अपने सिद्धान्तों की सच्चाई बनाये रखना कठिन हो गया, क्योंकि अनेक मतवाद हैं, अनेक ऋषि है किसको सही मानें, यह लोगों के सामने ज्वलंत प्रश्न बन गया। तब प्रायः सभी प्रमुख मतवादों ने अपने को प्रतिष्ठित करने के लिए युक्ति (तक) का सहारा लिया। जो ब्राह्मण धर्म के मूल श्रुति और स्मृति का तर्कशास्त्र के सहारे अपमान करता है, वह नास्तिक है।

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