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राम्पादकीरा 6
Prof. (Dr.) Sagarmal Jain M.A., Ph.D. Founder Director, Prachya Vidyapeeth, Shajapur Ex-Director, Parshwanath Vidyapeeth, Varanasi
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जीवन-प्रबन्धन (Life Management) दो शब्दों का एक सांयोगिक रूप है। प्रबन्धन शब्द का सामान्य अर्थ सही ढंग से व्यवस्था करना है। प्राचीन जैन-दर्शन में प्रबन्धन के लिए तंत्र शब्द का भी प्रयोग होता है। वस्तुतः, जीवन-तंत्र को सम्यक् रूप से समझे बिना जीवन का सम्यक् प्रबन्धन सम्भव नहीं है। मानव-जीवन एक आध्यात्मिक एवं मनोदैहिक संरचना है। इस जीवन-तंत्र के तीन पक्ष हैं - आत्मा, मन और शरीर। 'प्रबन्धन' शब्द तंत्र की अपेक्षा भी एक व्यापक अर्थ रखता है, जीवन क्या है और जीवन को कैसे जीना चाहिए - ये दोनों ही बातें जीवन-प्रबन्धन में है। इस प्रकार प्रबन्धन यथार्थ और आदर्श का एक सम्मिश्रण है। जब इसे हम जैन आचार्यों की दृष्टि से देखते हैं, तो यह जैन जीवन-प्रबन्धन की विधि बन जाता है। जीवन का प्रबन्धन वस्तुतः बहुकोणीय होता है, क्योंकि जीवन स्वयं बहुआयामी है। जीवन को जीने के जो विविध आयाम हैं, उनके आधार पर जीवन-प्रबन्धन को हम विविध भागों में विभाजित कर सकते हैं।
वस्तुतः, बाल्यकाल से ही जीवन-प्रबन्धन का प्रयास प्रारम्भ हो जाता है। बालक जब युवावस्था की ओर बढ़ने लगता है, तब उसे शिक्षित करने का प्रयास किया जाता है। बालक की शिक्षा कैसी हो और वह शिक्षा उसे किस प्रकार दी जाए - यह जीवन-प्रबन्धन का प्राथमिक तत्त्व है। जैन-दर्शन की मान्यता है कि जो जीवन हमें मिला है, वह मात्र जीवन जीने के लिए नहीं मिला है, अपितु किसी लक्ष्य या आदर्श की पूर्ति के लिए मिला है। जीवन तो पेड़-पौधे और अन्य प्राणी भी जीते हैं, लेकिन उनका जीवन लक्ष्यविहीन होता है। जीवन में लक्ष्य का निर्धारण कर, उसे पाने का प्रयत्न ही सम्यक् जीवनशैली का परिचायक हो सकता है। जीवन क्या है, उसे कैसे जीना चाहिए - यह बताना ही शिक्षा का मुख्य प्रयोजन है। अतः शिक्षा-विधि ऐसी होनी चाहिए, जो जीवन के यथार्थ और आदर्श का समन्वय करते हुए व्यक्ति को उसके जीवन-लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ने में सहायक हो सके।
जीवन का एक लक्ष्य दुःखों से मुक्ति है, किन्तु दुःख विविध प्रकार के हैं। वे दैहिक भी हैं और मानसिक भी हैं। दैहिक दुःखों का निराकरण सम्यक् ढंग से जीवन जीने के द्वारा सम्भव है, किन्तु मानसिक दुःखों से मुक्ति के लिए एक सम्यक् शिक्षण-पद्धति आवश्यक है। अतः, यह सही है कि जीवन जीने के लिए जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है, किन्तु शिक्षा का लक्ष्य मात्र जैविक
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