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अनाथालय - अनित्य
असहाय, निराश्रय, दीन ।
अनाथालय, अनाथाश्रम - पु० [सं०] वह स्थान जहाँ बिना माँ-बाप के बच्चे आदि रखे जायें, यतीमखाना । अनादर - पु० [सं०] आदरका अभाव; तिरस्कार; एक अर्थालंकार, जिसमें अधिक अच्छी लगनेवाली किसी अप्राप्त वस्तुको पाकर या देखकर प्राप्त वस्तुका अनादर किया
जाय ।
अनादरण - पु० [सं०] उपेक्षा या तिरस्कार करना । पु० (डिस ऑनर ) ( खाते में या शिल्लक में धनकी कमी आदिके कारण ) धनादेश (चेक), हुंडी या प्राप्यक ( बिल ) का रुपया देने से इनकार करना ।
अनादि - वि० [सं०] आदिरहित; नित्य ।
अनादिष्ट - वि० [सं०] आदेश न दिया हुआ । अनाहत - वि० [सं०] जिसका आदर न किया गया हो; तिरस्कृत ।
अनाद्यंत - वि० [सं०] जिसका आदि अंत न हो । पु०शिव । अनाधार - वि० [सं०] निराधार, निरवलंब, बेसहारा । अनाना* - स० क्रि० मँगाना ।
अनाप-शनाप - पु० अंडबंड, बेतुकी बकवास | अनापा - वि० विना नापा हुआ; अपरिमित । अनाप्त - वि० [सं०] जो आप्त-आत्मीय, यथार्थज्ञाता, विश्वसनीय या कुशल न हो; जो प्राप्त न हुआ हो । अनाम (न्) - वि० [सं०] नामरहित; अप्रसिद्ध ! अनामय - वि० [सं०] रोगरहितः स्वस्थ । पु० आरोग्य | अनामा, अनामिका - स्त्री० [सं०] कानी और बिचली उँगलियोंके बीच की उँगली ।
अनायत्त - वि० [सं०] जो दूसरोंके वशमें न हो, अवशीभूत, स्वाधीन ।
अनायास - अ० [सं०] बिना परिश्रमके, आसानी से;
अचानक ।
अनायासिक विजय- स्त्री० ( वॉकओहर ) बिना विशेष आयासके, आसानी से, प्राप्त विजय, अनायास प्राप्त विजय । अनार - पु० एक प्रसिद्ध फल और उसका पेड़; एक आतिशबाजी; * अन्याय; ऊधम ( बुंदेल ) । - दाना - ५० अनार के सुखाये हुए दाने ।
अनारी* वि० अनारके रंगका, लाल; दे० 'अनाड़ी' | अनार्जव - पु० [सं०] कपट; कुटिलता; बेईमानी । अनार्तव - पु० [सं०] रजोधर्मका अवरोध |
अनार्य - पु० [सं०] जो आर्य न हो, शूद्र, म्लेच्छ । वि० असभ्य, अप्रतिष्ठित, नीच; अनायचित । अनावरित करना - स० क्रि० ( अनवील ) किसी प्रसिद्ध
व्यक्तिकी मूर्ति या चित्रके ऊपर पड़ा हुआ आवरण हटाकर उसे जनता के दर्शनार्थ खोल देना । अनावरण - पु० (अनवीलिंग) किसी महापुरुषकी मूर्ति या चित्रको अनावरित करनेका कार्य या तत्संबंधी सार्वजनिक समारोह |
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अनावासिक- वि० अन्यत्र निवास करनेवाला, कर्त्तव्यादि संबंधी दायित्व के क्षेत्र में न रहनेवाला (नानरेजिडेंट) । - छात्र- पु० ( डे स्कालर) वह जो विश्वविद्यालय के बाहर, किसी निकटवत्ती नगर या ग्राममें, रहते हुए केवल विद्या अर्जन के लिए वहाँ की पढ़ाई आदिमें सम्मिलित होता हो । अनाविद्ध - वि० [सं०] न विधा हुआ; अनाहत । अनावृत - वि० [सं०] जो ढका न हो; खुला | अनावृत्त - वि० [सं०] जो लौटा न हो; जो दोहराया न गया हो ।
अनावृष्टि स्त्री० [सं०] अवर्षण, सूखा । अनावेदित - वि० [सं०] जिसकी विशप्ति न की गयी हो, जो जनाया न गया हो ।
अनाश्रमी (मिन्) - वि० [सं०] जो किसी आश्रम में न हो; आश्रमधर्मका अनुसरण न करनेवाला | अनाश्रय - वि० [सं०] आश्रयरहित, वे सहारा । अनाश्रित- वि० [सं०] जो दूसरेपर आश्रित न हो, स्वाधीन ।
अनासक्त - वि० [सं०] आसक्तिरहित । अनासक्ति - स्त्री० [सं०] आसक्तिका अभाव । अनासिक - वि० [सं०] बिना नाकका, नकटा | अनासीन - वि० (अन्सीटेड ) जिसे किसी कारणवश अपने स्थान, पद आदि से हट जाना पड़ा हो, स्थानवंचित | अनास्था - स्त्री० [सं०] आस्थाका अभाव, अश्रद्धा; अनादर । अनास्वादित - वि० [सं०] जिसका स्वादन लिया गया हो । अनाहक * - अ० दे० " नाहक " ।
अनाहत - वि० [सं०] आघातरहित; कोरा । पु० हठयोगके अनुसार शरीरके ६ चक्रोंमेंसे एक जिसका स्थान हृदय बताया जाता है । - नाद - शब्द - पु० योगियोंको सुनाई देनेवाली एक आंतरिक ध्वनि; ओम्-ध्वनि । अनाहार - पु० [सं०] आहारका अभाव या त्याग । वि० निराहार; जिसमें कुछ न खाया जाय । अनाहूत - वि० [सं०] बिन बुलाया, अनिमंत्रित । - प्रवेश - पु० ( इन्द्र, जन ) बिना बुलाये किसीके घर में प्रविष्ट हो जाना, किसीके सामने जबरन अपने आपको उपस्थित कर देना । अनिंद* - वि० दे० 'अनिंद्य' ।
अनिंदनीय - वि० [सं०] जो निंदा के योग्य न हो, निर्दोष । अनिंदित - वि० [सं०] निर्दोष, उत्तम, निंदारहित । अनिंद्य - वि० [सं०] निर्दोष, प्रशंसनीय; सुंदर । अनि आई* - वि० अन्यायी ।
अनिकेत - वि० [सं०] जिसका कोई नियत वासस्थान न हो; संन्यासी; खानाबदोश |
अनिग्रह - पु० [सं०] बंधन, रोक या दंडका अभावः तर्क में हार न मानना । वि० अनियंत्रित; अजेय । अनिच्छ, अनिच्छक, अनिच्छु, अनिच्छुक - वि० [सं०] इच्छारहित, न चाहनेवाला ।
अनावर्त्तक, अनावर्त्ती - वि० जो बार-बार न हो, जो अनिच्छा-स्त्री० [सं०] इच्छाका अभाव; अरुचि । एक ही बार दिया या किया जाय (नॉनरेकरिंग) | अनिच्छित - वि० [सं०] जो न चाहा गया हो । अनावश्यक - वि० [सं०] जिसकी आवश्यकता न हो, अनित्य - वि० [सं०] जो सदा न रहे, नश्वर, क्षणस्थायी, अनियमित ।
गैरजरूरी ।
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