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गौतमचरित्र। उनके राज्यमें समस्त प्रजा धर्म-साधन करनेमें सदा तत्पर रहती थी और भय, मानसिक वेदना, शारीरिक वेदना, संताप, दुःख, दरिद्रता आदि सब क्लेशोंसे अलग रहती थी ॥४३॥ वे महाराज श्रेणिक अपने रूपसे कामदेवको भी लज्जित करते थे, अपने तेजसे सूर्यको भी जीतते थे और याचकोंके लिये उनका कल्याण करनेवाला दान देकर कुबेरको भी नीचा दिखाते थे॥ ४४॥ विधाताने समुद्रसे गम्भीरता लेकर, चन्द्रमासे सुन्दरता लेकर, पर्वतसे निश्चलता लेकर और इन्द्रके गुरु बृहस्पतिसे बुद्धि लेकर उन राजा श्रेणिकमें गम्भीरता, सुन्दरता, निश्चलता और बुद्धिमत्ता आदि गुण निर्माण किये थे ॥४५॥ वे महाराज श्रेणिक तीनों प्रकारकी शक्तियां धारण करते थे, संधि, विग्रह आदि छहों गुणोंको धारण करते थे, धर्म, अर्थ, काम इन तीनों पुरुषार्थोको सदा सिद्ध करते रहते थे और समस्त इंद्रियोंको अपने वशमें रखते थे ॥ ४६॥ पूर्ण चन्द्रमाके समान उनकी निर्मल कीर्ति चारों दिशाओंमें घूम रही थी। यदि ऐसा न होता तो यस्मिन् सति प्रजाः सर्वा बभूवुर्वृषतत्पराः । भयाधिव्याधिसन्तापदुःखदारिद्यवर्जिताः ॥४३॥ रूपेण तर्निताऽनंगस्तेजसा जितभास्करः। निगाय राजरानं स याचके हितदानतः ॥४४॥ गांभीर्य जलधेः सौम्य चन्द्रस्य स्थिरतां गिरेः। मतिं सुरगुरोर्लात्वा धात्रास्मिन्निर्मिता गुणाः ॥४५॥ शक्तित्रयं दधानो यो बभूव षड्गुणान्वितः । त्रिवर्ग साधयन्नित्यं वशीलताक्षवर्गकः ॥४६॥ सुकीर्तिर्यस्य विभ्राम दिक्षु पूर्णेदुनिर्मला । अन्यथा सुरसुन्दर्यः कथं गायति तद्गुणान् ॥ ४७॥